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३०६] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं
[१, ९-७,६ खुज्जसंठाण-अद्धणारायणसंघडणणामाणमुक्कस्सओ द्विदिबंधो सोलससागरोवमकोडाकोडीओ ॥ ४२॥
कुञ्जकसंस्थान और अर्धनाराचसंहनन इन दोनों नामकर्मोका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध सोलह कोडाकोड़ि सागरोपम मात्र होता है ॥ ४२ ॥
सोलसवाससदाणि आबाधा ॥४३॥ उक्त दोनों कर्मोका उत्कृष्ट आबाधाकाल सोलह सौ वर्ष मात्र होता है ॥ ४३ ॥ आवाधूणिया कम्मट्ठिदी कम्मणिसेओ ।। ४४ ॥ उक्त दोनों कर्मोकी आबाधाकालसे हीन कर्मस्थिति प्रमाण उनका कर्मनिषेक होता है ।
॥ छठी चूलिका समाप्त हुई ॥ ६ ॥
७. सत्तमी चूलिया एत्तो जहण्णहिदि वण्णइस्सामो ॥ १ ॥ अब आगे जघन्य स्थितिका वर्णन करेंगे ॥ १ ॥
तं जहा ॥२॥ पंचण्हं णाणावरणीयाणं चदुण्हं दंसणावरणीयाणं लोभसंजलणस्स पंचण्हमंतराइयाणं जहण्णओ द्विदिबंधो अंतोमुहुत्तं ॥ ३ ॥
वह इस प्रकार है ॥२॥ पांचों ज्ञानावरणीय, चक्षुदर्शनावरणादि चार दर्शनावरणीय, लोभसंचलन और पांचों अन्तराय; इन काँका जघन्य स्थितिबन्ध अन्तर्मुहूर्त मात्र होता है ॥ ३ ॥
अंतोमुहुत्तमावाधा ॥४॥ उन ज्ञानावरणीयादि पन्द्रह कर्मोका जघन्य आबाधाकाल अन्तर्मुहूर्त मात्र होता है ॥४॥ आधाधूणिया कम्मट्ठिदी कम्मणिसेगो ॥ ५ ॥
उक्त ज्ञानावरणीयादि पन्द्रह काकी आबाधाकालसे हीन जघन्य कर्मस्थिति प्रमाण उनका कर्मनिषेक होता है ॥ ५ ॥
पंचदंसणावरणीय-असादावेदणीयाणं जहण्णगो डिदिबंधो सागरोवमस्स तिण्णि सत्तभागा पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागेण ऊणया ॥६॥
___ निद्रानिद्रादि पांच दर्शनावरणीय और असातावेदनीय इन कर्मप्रकृतियोंका जघन्य स्थितिबन्ध पल्योपमके असंख्यातवें भागसे हीन सागरोपमके तीन बटे सात भाग (३) प्रमाण होता है ॥ ६ ।
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