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छक्खंडागमे जीवट्ठाणं
[ १, ९-२, ८९
थिराथिराणमेक्कदरं सुभासुभाणमेकदरं सुहव - दुहवाणमेकदरं सुस्सर- दुस्सराणमेकदरं आदेज्जअणादेज्जाणमेकदरं जसकित्ति - अजसकित्तीणमेक्कदरं णिमिणं, एदासिं विदियएगूणतीसाए rastuta चैव द्वाणं ॥ ८९ ॥
नामकर्मके मनुष्यगति सम्बन्धी उक्त तीन बन्धस्थानोंमें यह द्वितीय उनतीसप्रकृतिक बन्धस्थान है - मनुष्यगति, पंचेन्द्रियजाति, औदारिकशरीर, तैजसशरीर, कार्मणशरीर, हुण्डसंस्थानको छोड़कर शेष पांच संस्थानोंमेंसे कोई एक, औदारिकशरीरांगोपांग, असंप्राप्तासृपाटिकासंहननको छोड़कर पांच संहननोंमेंसे कोई एक, वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श, मनुष्यगतिप्रायोग्यानुपूर्वी, अगुरुअलघु, उपघात, परघात, उच्छ्वास, दोनों विहायोगतियोंमें से कोई एक, त्रस, बादर, पर्याप्त, प्रत्येकशरीर, स्थिर और अस्थिर इन दोनोंमेंसे कोई एक, शुभ और अशुभ इन दोनोंमेंसे कोई एक, सुभग और दुर्भग इन दोनोंमें से कोई एक, सुस्वर और दुःस्वर इन दोनोंमेंसे कोई एक, आदेय और अनादेय इन दोनोंमेंसे कोई एक, यशः कीर्ति और अयशःकीर्ति इन दोनोंमेंसे कोई एक तथा निर्माण नामकर्म; इन द्वितीय उनतीस प्रकृतियोंका एक ही भावमें अवस्थान है ॥ ८९ ॥
यहांपर पांच संस्थान, पांच संहनन तथा विहायोगति आदि उक्त सात युगलों के विकल्प से बत्तीस सौ ( ५x५x२x२x२x२x२x२x२ = ३२०० ) भंग होते हैं ।
मणुसगदिं पंचिंदिय-पज्जतसंजुत्तं बंधमाणस्स तं सासणसम्मादिडिस्स ।। ९० ।। वह द्वितीय उनतीसप्रकृतिक बन्धस्थान पंचेन्द्रियजाति और पर्याप्त नामकर्मसे संयुक्त मनुष्यगतिको बांधनेवाले सासादनसम्यग्दृष्टि जीवके होता है ॥ ९० ॥
तत्थ इमं तदिगुणतीसाए ठाणं- मणुसगदी पंचिंदियजादी ओरालिय-तेजाकम्मइयसरीरं छण्हें संड्डाणामेक्कदरं ओरालियसरीरअंगोवंगं छण्हें संघडणाणमेक्कदरं वण्ण-गंध-रस-फार्स मणुसगदिपाओग्गाणुपुब्बी अगुरुअलहुव-उवघाद-पर घाद- उस्सास दोह विहायगदी मेक्कदरं तस - चादर - पज्जत्त - पत्तेयसरीरं थिराथिराणमेक्कदरं सुहासुहाणमेक्कदरं सुभग- दुभगाणमेक्कदरं सुस्सर दुस्सराणमेक्कदरं आदेज्ज- अणादेज्जाणमेक्कदरं जसकित्ति - अजस कित्ती मेकदरं णिमिणणामं, एदासिं तदियएगूणतीसाए पयडीणमेक्कम्हि चेव द्वाणं ।। ९१ नामकर्मके मनुष्यगति सम्बन्धी उक्त तीन बन्धस्थानोंमें यह तृतीय उनतीस प्रकृतिक बन्धस्थान है - मनुष्प्रगति, पंचेन्द्रियजाति, औदारिकशरीर, तैजसशरीर, कार्मणशरीर, छहों संस्थानोंमेंसे कोई एक, औदारिकशरीआंगोपांग, छहों संहननोंमेंसे कोई एक, वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श, मनुष्यगतिप्रायोग्यानुपूर्वी, अगुरुअलघु, उपघात, परघात, उच्छ्वास, दोनों विहायोगतियोंमेंसे कोई एक, त्रस, बादर, पर्याप्त, प्रत्येकशरीर, स्थिर और अस्थिर इन दोनोंमेंसे कोई एक, शुभ और अशुभ इन दोनोंमें से कोई एक, सुभग और दुर्भग इन दोनोंमेंसे कोई एक, सुस्वर और दुःस्वर इन दोनोंमेंसे कोई एक, आदेय और अनादेय इन दोनोंमेंसे कोई एक, यशः कीर्ति और अयशःकीर्ति इन दोनोंमेंसे
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