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छक्खंडागमे जीवद्वाणं
[ १, ९-१, २९
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बहुमान्यता है जिस कर्मके उदयसे जीवकी बहुमान्यता होती है वह आदेय नामकर्म कहलाता है उससे विपरीत भाव ( अनादरणीयता ) को उत्पन्न करनेवाला अनादेय नामकर्म है । यश नाम गुणका है, उस गुणको जो प्रगट करता है उसे कीर्ति कहते हैं । जिस कर्मके उदयसे लोगोंके द्वारा विद्यमान या अविद्यमान गुण प्रगट किये जाते हैं उसे यशः कीर्ति नामकर्म कहते हैं । जिस कर्मके उदयसे अन्य जनोंके द्वारा विद्यमान या अविद्यमान अवगुण प्रगट किये जाते हैं उसका नाम अश: कीर्ति नामकर्म है । नियत मानको निमान कहते हैं । वह दो प्रकारका है- प्रमाण निमान और संस्थान निमान । अभिप्राय यह कि जिस कर्मके उदयसे जीवोंके अंग और उपांग नियत प्रमाण और आकारमें हुआ करते हैं उसे निर्माण नामकर्म कहा जाता है । जिस कर्मके उदयसे जीव तीनों लोकोंके द्वारा पूजित होता है उसे तीर्थंकर नामकर्म कहते हैं ।
जं तं गदिणामकम्मं तं चउव्विहं - णिरयगदिणामं तिरिक्खगदिणामं मणुसगदि - णामं देवगदिणामं चेदि ॥ २९ ॥
जो वह गति नामकर्म है वह चार प्रकारका है- नरकगति नामकर्म, तिर्यग्गति नामकर्म मनुष्यगति नामकर्म और देवगति नामकर्म ॥ २९ ॥
जिस कर्मके उदयसे जीवको नारक पर्याय प्राप्त होती है उसका नाम नरकगति नामकर्म है । इसी प्रकार तिर्यग्गति आदि शेष तीन गतिनामकर्मोंका स्वरूप समझना चाहिये ।
जं तं जादिणामकम्मं तं पंचविहं- एइंदियजादिणामकम्मं बीइंदियजादिणामकम्मं तीइंदियजादिणामकम्मं चउरिंदियजादिणामकम्मं पंचिंदियजादिणामकम्मं चेदि ||३०|| जो वह जाति नामकर्म है वह पांच प्रकारका है - एकेन्द्रियजाति नामकर्म, द्वीन्द्रियजाति नामकर्म, त्रीन्द्रियजाति नामकर्म, चतुरिन्द्रियजाति नामकर्म और पंचेन्द्रियजाति नामकर्म ॥ ३० ॥ जिस कर्मके उदयसे एकेन्द्रिय जीवोंकी एकेन्द्रिय जीवोंके साथ एकेन्द्रियस्वरूपसे सदृशता होती है वह एकेन्द्रियजाति नामकर्म कहलाता है । वह एकेन्द्रियजाति नामकर्म भी अनेक प्रकारका है । जिस कर्मके उदयसे जीवोंकी द्वीन्द्रियत्वकी अपेक्षा समानता होती है वह द्वीन्द्रिय जाति नामकर्म कहलाता है । जिस कर्मके उदयसे जीवोंकी त्रीन्द्रियभावकी अपेक्षा समानता होती है वह त्रीन्द्रियजाति नामकर्म है । जिस कर्मके उदयसे जीवोंकी चतुरिन्द्रियभावकी अपेक्षा समानता होती है वह चतुरिन्द्रियजाति नामकर्म कहलाता है । जिस कर्मके उदयसे जीवोंकी पंचेन्द्रियस्वरूपसे समानता होती है उसे पंचेन्द्रियजाति नामकर्म कहते हैं ।
जं तं सरीरणामकम्मं तं पंचविहं- ओरालियसरीरणामं वेडव्वियसरीरणामं आहारसरीरणामं तेयासरीरणामं कम्मइयसरीरणामं चेदि ॥ ३१ ॥
जो वह शरीर नामकर्म है वह पांच प्रकारका है- औदारिकशरीर नामकर्म, वैक्रियिकशरीर नामकर्म, आहारकशरीर नामकर्म, तैजसशरीर नामकर्म और कार्मणशरीर नामकर्म ॥ ३१ ॥
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