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२७२ ] . छक्खंडागमे जीवट्ठाणं
[१, ९-१, ३५ न्यग्रोधपरिमण्डलशरीरसंस्थान नामकर्म, स्वातिशरीरसंस्थान नामकर्म, कुब्जशरीरसंस्थान नामकर्म, वामनशरीरसंस्थान नामकर्म और हुण्डशरीरसंस्थान नामकर्म ॥ ३४ ॥
जिसके उदयसे जीवोंका शरीर ऊपर, नीचे और मध्यमें सुन्दर और सुडोल होता है वह समचतुरस्रसंस्थान नामकर्म कहलाता है। न्यग्रोधका अर्थ वटका वृक्ष होता है। जिसके उदयसे जीवके शरीरकी रचना वटवृक्षके घेरेके समान नाभिके ऊपर विस्तृत और नीचे हीन होती है उसे न्यग्रोधपरिमण्डलसंस्थान नामकर्म कहते हैं । स्वातिका अर्थ सर्पकी बांबी और सेमरका वृक्ष भी होता है। जिसके उदयसे शरीरकी रचना सर्पकी बांबीके समान नाभिसे ऊपर हीन और उसके नीचे विस्तृत होती है वह स्वातिसंस्थान नामकर्म कहलाता है। जिसके उदयसे पीठके भागमें बहुत पुद्गलस्वरूप कुबड़ा शरीर होता है उसे कुब्जशरीरसंस्थान नामकर्म कहते हैं । जिसके उदयसे समस्त अंग-उपांगोंकी हीनतारूप बौना शरीर होता है वह वामनसंस्थान नामकर्म कहलाता है। जिसके उदयसे विषम आकारवाले पत्थरोंसे भरी हुई मशकके समान शरीरके अवयवोंकी रचना विषम ( बेडौल ) होती है उसका नाम हुण्डशरीरसंस्थान नामकर्म है ।
जं तं सरीरअंगोवंगणामकम्मं तं तिविहं- ओरालियसरीरअंगोवंगणामं वेउब्वियसरीरअंगोवंगणामं आहारसरीरअंगोवंगणामं चेदि ॥ ३५ ॥
जो वह शरीरअंगोपांग नामकर्म है वह तीन प्रकारका है-- औदारिकशरीरअंगोपांग नामकर्म वैक्रियिकशरीरअंगोपांग नामकर्म, आहारकशरीरअंगोपांग नामकर्म ॥ ३५ ॥
जिस कर्मके उदयसे औदारिकशरिरके अंग, उपांग और प्रत्यंग उत्पन्न होते हैं वह औदारिकशरीरअंगोपांग नामकर्म है । इसी प्रकार शेष दो अंगोपांग नामकोका भी अर्थ जानना चाहिये । तैजस और कार्मणशरीरके अंगोपांग नहीं होते हैं, क्योंकि, उनके हाथ, पांव और गला आदि अवयव सम्भव नहीं हैं।
जं तं शरीरसंघडणणामकम्मं तं छव्विहं- बजरिसहवइरणारायणसरीरसंघडणणामं वजणारायणसरीरसंघडणणामं णारायणसरीरसंघडणणामं अद्धणारायणसरीरसंघडणणाम खीलियसरीरसंघडणणामं असंपत्तसेवट्टसरीरसंघडणणामं चेदि ॥ ३६ ॥
जो वह शरीरसंहनन नामकर्म है वह छह प्रकारका है-- वर्षभवज्रनाराचशरीरसंहनन नामकर्म, वज्रनाराचशरीरसंहनन नामकर्म, नाराचशरीरसंहनन नामकर्म, अर्धनाराचशरीरसंहनन नामकर्म, कीलकशरीरसंहनन नामकर्म और असंप्राप्तासृपाटिकाशरीरसंहनन नामकर्म ॥ ३६॥
___ हड्डियोंके संचयको संहनन कहते हैं । ऋषभका अर्थ वेष्टन होता है । जिस कर्मके उदयसे वज्रमय हड्डियां वज्रमय वेष्टनसे वेष्टित और वज्रमय नाराचसे कीलित होती हैं वह वर्षभवज्रनाराचशरीरसंहनन नामकर्म है । जिस कर्मके उदयसे उपर्युक्त अस्थिबन्ध वज्रमयवेष्टनसे रहित होता है वह
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