________________
९. जीवद्वाण - चूलियाए पढमा चूलिया
दि काओ पडीओ बंधदि, केवडिकालडिदिएहि कम्मेहि सम्मत्तं लंभदि वा ण लब्भदि वा, केवचिरेण वा कालेण कदि भाए वा करेदि मिच्छत्तं, उवसमणा वा खवणा वासु व खेतेसु कस्स व मूले केवडियं वा दंसणमोहणीयं कम्मं खवेंतस्स चारितं वा संपूण्णं पडिवज्जंतस्स ॥ १ ॥
सम्यक्त्वको उत्पन्न करनेवाला मिथ्यादृष्टि जीव कितनी और किन प्रकृतियोंको बांधता है, कितने काल प्रमाण स्थितिवाले कर्मोंके द्वारा सम्यक्त्वको प्राप्त करता है अथवा नहीं प्राप्त करता है, मिथ्यात्व कर्मको वह कितने कालमें और कितने भागरूप करता है, तथा किन क्षेत्रों में व किसके पादमूलमें कितने मात्र दर्शनमोहनीय कर्मकी क्षपणा करनेवाले जीवके और सम्पूर्ण चारित्रको प्राप्त होनेवाले जीवके मोहनीय कर्मकी उपशामना तथा क्षपणा होती है ? ॥ १ ॥
पूर्वोक्त अनुयोगद्वारोंके विषम (दुरवबोध) स्थलोंके विशेष विवरणका नाम चूलिका है । यह जीवस्थान सम्बन्धी चूलिका नौ प्रकारकी है । वह इस प्रकारसे — सूत्रमें जो ' कितनी प्रकृतियोंको बांधता है ' ऐसा कहा गया है उससे प्रकृतिसमुत्कीर्तन और स्थानसमुत्कीर्तन नामकी प्रथम दो चूलिकाओंकी सूचना की गई है । उसके आगे जो वहां ' किन प्रकृतियोंको बांधता है ' ऐसा कहा गया है उससे प्रथम दण्डक, द्वितीय दण्डक व तृतीय दण्डक नामकी तीसरी, चौथी और पांचवीं इन तीन चूलिकाओंकी सूचना की गई है । आगे इसी सूत्र में जो यह कहा गया है कि " कितने कालकी स्थितिवाले कर्मोंके द्वारा सम्यक्त्वको प्राप्त करता है और कितने कालकी स्थिति - वाले कर्मोंके द्वारा उस सम्यक्त्वको नहीं प्राप्त करता है ' उससे उत्कृष्ट-स्थिति नामकी छठी तथा जघन्य-स्थिति नामकी सातवीं चूलिकाकी सूचना की गई है । तत्पश्चात् जो सूत्रमें ' किन क्षेत्रों में व किसके पादमूलमें ' इत्यादि कहा गया है उससे सम्यक्त्वोत्पत्ति नामकी आठवीं चूलिकाकी सूचना की गई है । प्रकृत सूत्रके ' चारितं वा संपुष्णं पडिवज्जंतस्स ' इस अन्तिम वाक्यांशमें जो ' वा ' शब्दका ग्रहण किया है उससे गति- आगति नामकी नौवीं अन्तिम चूलिकाकी सूचना की गई है । इन सबका विशेष विवरण आगे यथास्थानमें किया ही जानेवाला है ।
कद काओ पगडीओ बंधदि ति जं पदं तस्स विहासा ।। २ ।।
' कितनी और किन प्रकृतियोंको बांधता है ' यह जो पूर्व सूत्रका अंश है उसका व्याख्यान किया जाता है ॥ २ ॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org