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१, ९-१, २८]. जीवट्ठाण-चूलियाए पयडिसमुक्त्तिणं हास्य, रति, अरति, शोक, भय और जुगुप्सा ॥ २४ ॥
नोकषाय इस शब्दमें 'नो' शब्दको एकदेशका प्रतिषेध करनेवाला ग्रहण करना चाहिये। अभिप्राय यह कि नोकषाय ईषत् कषायको कहते हैं। चूंकि इनकी स्थिति और अनुभाग कषायोंकी अपेक्षा हीन होते हैं, इसीलिये इनको नोकषाय माना जाता है ।
जिन कर्मस्कन्धोंके उदयसे पुरुषविषयक आकांक्षा उत्पन्न होती है उन कर्मस्कन्धोंको स्त्रीवेद कहा जाता है । जिन कर्मस्कन्धोंके उदयसे स्त्रीविषयक आकांक्षा उत्पन्न होती है उन्हें पुरुषवेद कहते हैं । जिन कर्मस्कन्धोंके उदयसे ईटोंकी अबाके अग्निके समान स्त्री और पुरुष दोनोंकी ही आकांक्षा उत्पन्न होती है उनका नाम नपुंसकवेद है । जिन कर्मस्कन्धोंके उदयसे जीवके हास्यका कारणभूत राग उत्पन्न होता है उन्हें हास्य नोकषाय कहते हैं । जिन कर्मस्कन्धोंके उदयसे जीवके द्रव्य, क्षेत्र, काल और भावोंमें रागभाव उत्पन्न होता है उनको रति नोकषाय कहते हैं। जिन कर्मस्कन्धोंके उदयसे जीवके द्रव्य, क्षेत्र, काल और भावोंमें द्वेषभाव उत्पन्न होता है उनका नाम अरति नोकषाय है । जिन कर्मस्कन्धोंके उदयसे जीवमें शोक उत्पन्न होता है उनको शोक नोकषाय कहा जाता है। उदयमें आये हुए जिन कर्मस्कन्धोंके द्वारा जीवमें भय उत्पन्न होता है उनका नाम भय नोकषाय है। जिन कोंके उदयसे जीवके ग्लानि उत्पन्न होती है उनको जुगप्सा नोकषाय कहा जाता हैं ।
आउगस्स कम्मस्स चत्तारि पयडीओ ॥ २५ ॥ आयु कर्मकी चार प्रकृतियां हैं ॥ २५ ॥ णिरयाऊ तिरिक्खाऊ मणुस्साऊ देवाऊ चेदि ॥ २६ ॥ नारकायु, तिर्यगायु, मनुष्यायु और देवायु ये आयु कर्मकी वे चार प्रकृतियां हैं ॥२६॥
जिन कर्मस्कन्धोंके उदयसे ऊर्ध्वगमन स्वभाववाले जीवका नारक भवमें अवस्थान होता है उन कर्मस्कन्धोंका नाम नारकायु है । जिन कर्मस्कन्धोंके उदयसे तिर्यंच भवमें जीवका अवस्थान होता है उन कर्मस्कन्धोंको तिर्यगायु कहा जाता है । इसी प्रकार मनुष्यायु और देवायुका भी स्वरूप जानना चाहिये ।
णामस्स कम्मस्स वादालीसं पिंडपयडीणामाई ॥ २७ ॥ नाम कर्मकी ब्यालीस पिण्डप्रकृतियां हैं ॥ २७ ॥
गदिणाम जादिणाम सरीरणाम सरीरबंधणणाम सरीरसंघादणाम सरीरसंहाणणामं सरीरअंगोवंगणामं सरीरसंघणणामं वण्णणामं गंधणामं रसणामं फासणामं आणुपुवीणामं अगुरु-अलहुवणामं उबघादणामं परघादणामं उस्सासणामं आदावणामं उज्जोवणामं विहायगदिणामं तसणामं थावरणामं बादरणामं सुहुमणामं पज्जत्तणामं अपज्जत्तणामं पत्तेय
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