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२२६] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं
[१, ७, ८२ उपशमसम्यक्त्वी असंयतसम्यग्दृष्टिका असंयतत्व औदयिक भावसे है ॥ ८१ ॥ संजदासंजद-पमत्त-अप्पमत्तसंजदा त्ति को भावो ? खओवसमिओ भावो ॥८२॥
उपशमसम्यग्दृष्टि संयतासंयत, प्रमत्तसंयत और अप्रमत्तसंयत यह कौन-सा भाव है ? क्षायोमशमिक भाव है ॥ ८२ ॥
उपसमियं सम्मत्तं ॥ ८३ ।। उक्त उपशमसम्यग्दृष्टि जीवोंके औपशमिक सम्यग्दर्शन ही होता है ।। ८३ ॥ चदुण्हमुवसमा त्ति को भावो ? उपसमिओ भावो ॥ ८४ ॥
अपूर्वकरण आदि चार गुणस्थानोंका उपशमसम्यग्दृष्टि उपशामक कौन-सा भाव है ? औपशमिक भाव है ॥ ८४ ॥
उवसमियं सम्मत्तं ॥ ८५ ।। उक्त जीवोंके औपशमिक सम्यग्दर्शन ही होता है ॥ ८५ ॥ सासणसम्मादिट्ठी ओघं ॥ ८६ ॥ सासादनसम्यग्दृष्टि भाव ओघके समान पारिणामिक भाव है ॥ ८६ ॥ सम्मामिच्छादिट्ठी ओघं ॥८७॥ सम्यग्मिथ्यादृष्टि भाव ओघके समान क्षायोपशमिक भाव है ॥ ८७ ॥ मिच्छादिट्ठी ओघं ॥ ८८॥ मिथ्यादृष्टि भाव ओघके समान औदयिक भाव है ॥ ८८ ॥
सणियाणुवादेण सण्णीसु मिच्छादिटिप्पहुडि जाव खीणकसाय-वीदरागछदुमत्था ति ओघं ॥ ८९ ॥
___ संज्ञीमार्गणाके अनुवादसे संज्ञियोंमें मिथ्यादृष्टिसे लेकर क्षीणकषाय-वीतराग-छद्मस्थ तक इन भावोंकी प्ररूपणा ओघके समान है ॥ ८९ ॥
असण्णि त्ति को भावो ? ओदइओ भावो ॥ ९० ॥ असंज्ञी यह कौन-सा भाव है ? औदयिक भाव है ॥ ९० ॥
इसका कारण यह है कि वह (असंज्ञित्व) नोइन्द्रियावरणके सर्वघाती स्पर्धकोंके उदयसे उत्पन्न होता है।
आहाराणुवादेण आहारएसु मिच्छादिहिप्पहुडि जाव सजोगिकेवलि त्ति ओघं ॥
आहारमार्गणाके अनुवादसे आहारकोंमें मिथ्यादृष्टिसे लेकर सयोगिकेवली तक इन भावोंकी प्ररूपणा ओघके समान है ॥ ९१ ॥
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