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छक्खंडागमे जीवाणं
raण ति अद्धासु उवसमा पवेसणेण तुल्ला थोवा ॥ २ ॥
ओघनिर्देशसे अपूर्वकरणादि तीन गुणस्थानों में उपशामक जीव प्रवेशकी अपेक्षा परस्पर तुल्य तथा अन्य सब गुणस्थानोंकी अपेक्षा अल्प हैं ॥ २ ॥
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इसका कारण यह है कि इन गुणस्थानोंमें क्रमसे एकको आदि लेकर अधिक से अधिक चौवन जीव ही प्रवेश करते हैं ।
उवसंतकसाय -वीदराग-छदुमत्था तत्तिया चेय ॥ ३ ॥
उपशान्तकषाय- वीतराग छद्मस्थ पूर्वोक्त प्रमाण ही हैं ॥ ३ ॥
जब कि उपशान्तकषाय गुणस्थानवर्ती जीवोंका प्रमाण अपूर्वकरण उपशामकों आदिके ही समान है तब उनका ग्रहण पूर्व सूत्रमें ही किया जा सकता था, फिर भी उनके अल्पबहुत्वकी प्ररूपणा जो इस पृथक् सूत्रके द्वारा की गई है उसका प्रयोजन अपूर्वकरणादि तीन उपशामकोंसे उनकी भिन्नताको प्रगट करना है ।
[ १, ८, २
खवा संखेज्जगुणा ॥ ४ ॥
उपशान्तकषाय- वीतराग छद्मस्थोंसे अपूर्वकरणादि तीन गुणस्थानवर्ती क्षपक संख्यातगुणित
हैं ॥ ४ ॥
कारण यह है कि क्षपक प्रवेशकी अपेक्षा पूर्वोक्त उपशामकोंसे दुगुने ( अधिक से अधिक १०८) पाये जाते हैं । इसी प्रकार संचयकी अपेक्षा भी वे उक्त उपशामकों ( २९९ ) से दुगुने ( ५९८ ) ही पाये जाते हैं ।
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खीणकसाय - वीदराग छदुमत्था तत्तिया चेव ॥ ५॥
क्षीणकषाय- वीतराग-छद्मस्थ पूर्वोक्त प्रमाण ही हैं ॥ ५ ॥
इस सूत्र की पृथक् रचनाका भी कारण पूर्वके ही समान समझना चाहिये । सजोगिकेवली अजोगिकेवली पवेसणेण दो वि तुल्ला तत्तिया चेव || ६ || सयोगिकेवली और अयोगिकेवली प्रवेशकी अपेक्षा दोनों ही तुल्य और पूर्वोक्त प्रमाण ही
हैं ॥ ६ ॥
अभिप्राय यह है कि वे प्रवेशकी अपेक्षा अधिकसे अधिक एक सौ आठ (१०८) तथा संचयकी अपेक्षा अधिकसे अधिक दो कम छह सौ ( ५९८ ) होते हैं । सजोगिकेवली अद्धं पडुच्च संखेज्जगुणा || ७ ||
सयोगिकेवली कालकी अपेक्षा संख्यातगुणित हैं ॥ ७ ॥
अपमत्त संजदा अक्खवा अणुवसमा संखेज्जगुणा ॥ ८ ॥
सयोगिकेवलियोंसे अक्षपक और अनुपशामक अप्रमत्तसंयत जीव संख्यातगुणित हैं ॥ ८ ॥
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