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२३६ ] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं
[१, ८, ९५ खइयसम्मादिट्ठी असंखेज्जगुणा ॥९५ ॥ वेदगसम्मादिट्ठी संखेज्जगुणा ॥१६॥
उनमें उपशमसम्यग्दृष्टियोंसे क्षायिकसम्यग्दृष्टि देव असंख्यातगुणित हैं ॥९५॥ क्षायिकसम्यग्दृष्टियोंसे वेदकसम्यग्दृष्टि देव संख्यातगुणित हैं ॥ ९६ ॥
अणुदिसादि जाव अवराइदविमाणवासियदेवेसु असंजदसम्मादिट्टिट्ठाणे सव्वत्थोवा उवसमसम्मादिट्ठी ॥ ९७॥
नव अनुदिशोंको आदि लेकर अपराजित नामक अनुत्तर विमान तक विमानवासी देवोंमें असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थानवर्ती उपशमसम्यग्दृष्टि सबसे कम हैं ॥ ९७ ॥
खइयसम्मादिट्ठी असंखेज्जगुणा ॥ ९८ ॥ वेदगसम्मादिट्ठी संखेज्जगुणा ॥१९॥
उपर्युक्त देवोंमें असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थानमें वर्तमान उपशमसम्यग्दृष्टियोंकी अपेक्षा क्षायिकसम्यग्दृष्टि असंख्यातगुणित हैं ॥ ९८ ॥ क्षायिकसम्यग्दृष्टियोंसे वेदकसम्यग्दृष्टि देव संख्यातगुणित हैं ॥ ९९ ॥
___सव्वट्ठसिद्धिविमाणवासियदेवेसु असंजदसम्मादिहिट्ठाणे सव्वत्थोवा उवसमसम्मादिट्ठी ॥१०० ॥
सर्वार्थसिद्धि विमानवासी देवोंमें असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थानमें उपशमसम्यग्दृष्टि सबसे कम हैं ॥१०॥
खइयसम्मादिट्ठी संखेज्जगुणा ॥१०१॥ वेदगसम्मादिट्ठी संखेज्जगुणा ॥१०२।।
उनमें उपशमसम्यग्दृष्टियोंसे क्षायिकसम्यग्दृष्टि देव संख्यातगुणित हैं ॥१०१॥ क्षायिकसम्यग्दृष्टियोंसे वेदकसम्यग्दृष्टि देव संख्यातगुणित हैं ॥ १०२ ॥
___ इंदियाणुवादेण पंचिंदिय-पंचिंदियपज्जत्तएसु ओघं । णवरि मिच्छादिट्टी असंखेज्जगुणा ।। १०३ ।।
इन्द्रियमार्गणाके अनुवादसे पंचेन्द्रिय और पंचेन्द्रिय पर्याप्तकोंमें अल्पबहुत्वकी प्ररूपणा ओघके समान है । विशेषता केवल यह है कि उनमें असंयतसम्यग्दृष्टियोंसे मिथ्यादृष्टि जीव असंख्यातगुणित हैं ॥ १०३ ॥
शेष एकेन्द्रियादि जीवोंमें एक मात्र मिथ्यादृष्टि गुणस्थानका सद्भाव होनेसे चूंकि उनमें अल्पबहुत्वकी सम्भावना नहीं है, अतएव यहां उनके अल्पबहुत्वकी प्ररूपणा नहीं की गई है।
कायाणुवादेण तसकाइय-तसकाइयपज्जत्तएसु ओघं । णवरि मिच्छादिट्ठी असंखेज्जगुणा ॥ १०४ ॥
कायमार्गणाके अनुवादसे त्रसकायिक और त्रसकायिक पर्याप्तकोंमें अल्पबहुत्वकी प्ररूपणा ओघके समान है। उनमें विशेषता केवल यह है कि असंयतसम्यग्दृष्टियोंसे मिथ्यादृष्टि जीव
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