________________
२५४ ] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं
[१, ८, ३२४ जीव असंख्यातगुणित हैं ॥३२२॥ क्षायिकसम्यग्दृष्टियोंसें वेदकसम्यग्दृष्टि संख्यातगुणित हैं ॥३२३॥
संजदासंजद-पमत्त-अप्पमत्तसंजदट्ठाणे सम्मत्तप्पाबहुगमोघं ॥ ३२४ ॥
शुक्ललेश्यावालोंमें संयतासंयत, प्रमत्तसंयत और अप्रमत्तसंयत गुणस्थानमें सम्यक्त्व सम्बन्धी अल्पबहुत्वकी प्ररूपणा ओघके समान है ॥ ३२४ ॥
एवं तिसु अद्धासु ॥ ३२५ ॥
इसी प्रकार शुक्ललेश्यावालोंमें अपूर्वकरण आदि तीन गुणस्थानोंमें सम्यक्त्व सम्बन्धी अल्पबहुत्व जानना चाहिये ॥ ३२५ ।।
सव्वत्थोवा उवसमा ॥ ३२६ ॥ खवा संखेज्जगुणा ॥ ३२७ ॥
शुक्ललेश्यावालोंमें उपर्युक्त गुणस्थानोंमें उपशामक जीव सबसे कम हैं ॥३२६॥ उपशामकोंसे क्षपक जीव संख्यातगुणित हैं ॥ ३२७ ॥
भवियाणुवादेण भवसिद्धिएसु मिच्छाइट्ठी जाव अजोगिकेवलि ति ओघं ॥३२८॥
भव्यमार्गणाके अनुवादसे भव्यसिद्धिकोंमें मिथ्यादृष्टिसे लेकर अयोगिकविली गुणस्थान तक इस अल्पबहुत्वकी प्ररूपणा ओघके समान है ॥ ३२८ ॥
अभवसिद्धिएसु अप्पाबहुअं णत्थि ॥ ३२९ ॥ अभव्यसिद्धोंमें अल्पबहुत्व नहीं है ॥ ३२९ ॥ सम्मत्ताणुवादेण सम्मादिट्ठीसु ओधिणाणिभंगो ॥ ३३० ॥
सम्यक्त्वमार्गणाके अनुवादसे सम्यग्दृष्टि जीवोंमें अल्पबहुत्वकी प्ररूपणा अवधिज्ञानियोंके समान है ॥ ३३० ॥
खइयसम्मादिट्ठीसु तिसु अद्धासु उवसमा पवेसणेण तुल्ला थोवा ॥ ३३१ ॥
क्षायिकसम्यग्दृष्टियोंमें अपूर्वकरण आदि तीन गुणस्थानवर्ती उपशामक जीव प्रवेशकी अपेक्षा तुल्य और अल्प हैं ॥ ३३१ ॥
उवसंतकसायचीदराग-छदुमत्था तत्तिया चेव ॥ ३३२ ॥ क्षायिकसम्यग्दृष्टियोंमें उपशान्तकषाय-वीतराग-छद्मस्थ जीव पूर्वोक्त प्रमाण ही हैं ॥३३२॥ खवा संखेज्जगुणा ॥ ३३३ ॥ खीणकसाय-चीदराग-छदुमत्था तत्तिया चेव ॥
क्षायिकसम्यग्दृष्टियोंमें उपशान्तकषाय-वीतराग-छद्मस्थोंसे क्षपक जीव संख्यातगुणित हैं ॥ ३३३ ॥ क्षीणकषाय-वीतराग-छद्मस्थ पूर्वोक्त प्रमाण ही हैं ॥ ३३४ ॥
सजोगिकेवली अजोगिकेवली पवसणेण दो वि तुला तत्तिया चेव ॥ ३३५ ॥
क्षायिकसम्यग्दृष्टियोंमें सयोगिकेवली और अयोगिकेवली ये दोनों ही प्रवेशकी अपेक्षा तुल्य और पूर्वोक्त प्रमाण ही हैं ॥ ३३५॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org