________________
१, ८, २२०] __ अप्पाबहुगाणुगमे णाणमग्गणा
[२४५ चारों कषायवाले उपशामक जीव सबसे कम हैं ॥ २१० ॥ खवा संखेज्जगुणा ॥ २११ ॥ चारों कषायवाले उपशामकोंसे क्षपक जीव संख्यातगुणित हैं ॥ २११॥ अकसाईसु सव्वत्थोवा उवसंतकसाय-बीदराग-छदुमत्था ॥ २१२ ॥ अकषायी जीवोंमें उपशान्तकषाय-वीतराग-छमस्थ सबसे कम हैं ॥ २१२ ॥ खीणकसाय-वीदराग-छदुमत्था संखेज्जगुणा ॥ २१३ ॥
अकषायी जीवोंमें उपशान्तकषाय-वीतराग-छद्मस्थोंसे क्षीणकषाय-वीतराग-छद्मस्थ संख्यातगुणित हैं ॥ २१३ ॥
सजोगिकेवली अजोगिकेवली पवेसणेण दो वि तुल्ला तत्तिया चेव ।। २१४ ॥
अकषायी जीवोंमें सयोगिकेवली और अयोगिकेवली ये दोनों ही प्रवेशकी अपेक्षा तुल्य और पूर्वोक्त प्रमाण ही हैं ॥ २१४ ॥
सजोगिकेवली अद्धं पडुच्च संखेज्जगुणा ।। २१५ ॥ अकषायी जीवोंमें सयोगिकेवली संचयकालकी अपेक्षा संख्यातगुणित हैं ॥ २१५॥
णाणाणुवादेण मदिअण्णाणि-सुदअण्णाणि-विभंगणाणीसु सव्वत्थोवा सासणसम्मादिट्ठी ॥ २१६ ॥
ज्ञानमार्गणाके अनुवादसे मत्यज्ञानी, श्रुताज्ञानी और विभंगज्ञानी जीवोंमें सासादनसम्यग्दृष्टि सबसे कम हैं ॥ २१६॥
मिच्छादिट्ठी अणंतगुणा, मिच्छादिट्ठी असंखेज्जगुणा ।। २१७ ॥
उक्त तीनों अज्ञानी जीवोंमें मत्यज्ञानी और श्रुताज्ञानी मिथ्यादृष्टि अनन्तगुणित हैं तथा विभंगज्ञानी मिथ्यादृष्टि असंख्यातगुणित हैं ॥ २१७ ॥
आभिणिबोहिय-सुद-ओधिणाणीसु तिसु अद्धासु उवसमा पवेसणेण तुल्ला थोवा।।
आभिनिबोधिकज्ञानी, श्रुतज्ञानी और अवधिज्ञानी जीवोंमें अपूर्वकरण आदि तीन गुणस्थानोंमें उपशामक प्रवेशकी अपेक्षा तुल्य और अल्प हैं ॥ २१८ ॥
उवसंतकसाय-वीदराग-छद्मत्था तत्तिया चेव ।। २१९ ॥ मति, श्रुत और अवधिज्ञानियोंमें उपशान्तकषाय-वीतराग-छद्मस्थ पूर्वोक्त प्रमाण ही हैं । खवा संखेज्जगुणा ॥ २२० ॥
मति, श्रुत और अवधिज्ञानियोंमें उपशान्तकषाय-वीतराग-छद्मस्थोंसे क्षपक जीव संख्यातगुणित हैं ॥ २२० ॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org