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१, ७, ८१] भावाणुगमे सम्मत्तमग्गणा
[ २२५ क्षायिकसम्यग्दृष्टियोंमें अपूर्वकरण आदि चार उपशामक यह कौन-सा भाव है ? औपशमिक भाव है ॥ ७० ॥
खइयं सम्मत्तं ॥ ७१ ॥ क्षायिकसम्यग्दृष्टि चारों उपशामकोंके क्षायिक सम्यक्त्व ही होता है ॥ ७१ ॥
इसका यह अभिप्राय समझना चाहिये कि जिस जीवने दर्शनमोहनीयकी क्षपणा प्रारम्भ की है अथवा जो कृतकृत्यवेदकसम्यग्दृष्टि है वह उपशमश्रेणिपर नहीं चढ़ता है ।
चदुण्हं खवा सजोगिकेवली अजोगिकेवलि त्ति को भावो ? खइओ भावो ॥७२॥
क्षायिकसम्यग्दृष्टि चारों क्षपक, सयोगिकेवली और अयोगिकेवली यह कौन-सा भाव है ? क्षायिक भाव है । ७२ ॥
खइयं सम्मत्तं ।। ७३ ।। चारों क्षपक, सयोगिकेवली और अयोगिकेवलीके क्षायिक सम्यग्दर्शन ही होता है ॥७३॥ वेदयसम्मादिट्ठीसु असंजदसम्मादिहि त्ति को भावो ? खभोवसमिओ भावो ॥ वेदकसम्यग्दृष्टियोंमें असंयतसम्यग्दृष्टि यह कौन-सा भाव है ? क्षायोपशमिक भाव है ॥७॥ खओवसमियं सम्मत्तं ।। ७५ ॥ वेदकसम्यग्दृष्टि जीवोंके क्षायोपशमिक सम्यग्दर्शन ही होता है ॥ ७५ ॥ ओदइएण भावेण पुणो असंजदो ।। ७६ ।। वेदकसम्यग्दृष्टियोंका असंयतत्व औदयिक भावसे है ॥ ७६ ॥ संजदासंजद-पमत्त-अप्पमत्तसंजदा त्ति को भावो ? खओवसमिओ भावो ॥७७॥
वेदकसम्यग्दृष्टि संयतासंयत, प्रमत्तसंयत और अप्रमत्तसंयत यह कौन-सा भाव है ? क्षायोपशमिक भाव है ॥ ७७ ॥
खओवसमियं सम्मत्तं ॥ ७८ ॥ उक्त जीवोंके क्षायोपशमिक सम्यग्दर्शन ही होता है ।। ७८ ।। उवसमसम्मादिट्ठीसु असंजदसम्मादिहि त्ति को भावो ? उवसमिओ भावो॥ उपशमसम्यग्दृष्टियोंमें असंयतसम्यग्दृष्टि यह कौन-सा भाव है ॥ ७९ ॥ उवसमियं सम्मत्तं ॥ ८० ॥ उपशमसम्यग्दृष्टियोंमें असंयतसम्यग्दृष्टियोंके औपशमिक सम्यग्दर्शन ही होता है । ८० ॥
ओदइएण भावेण पुणो असंजदो ।। ८१ ।। छ. २९
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