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भावोंकी प्ररूपणा ओधके समान है ॥ ५० ॥
भावागमे दंसणमग्गणा
परिहारसुद्धिसंजदेसु पमत्त अप्पमत्त संजदा ओघं ॥ ५१ ॥
परिहारशुद्धिसंयतोंमें प्रमत्तसंयत और अप्रमत्तसंयत भावोंकी प्ररूपणा ओघके समान है ॥ सुमसां पराइय-सुद्धिसंजदेसु सुहुमसांपराइया उवसमा खवा ओघं ॥ ५२ ॥ सूक्ष्म- साम्परायिक-शुद्धिसंयतोंमें सूक्ष्मसाम्परायिक उपशामक और क्षपक भावोंकी प्ररूपणा ओधके समान है ॥ ५२ ॥
जहाक्खाद - विहार-शुद्धिसंजदेसु चदुट्टाणी ओघं ॥ ५३ ॥
यथाख्यात -विहार-शुद्धिसंयतों में उपशान्तकषाय आदि चारों भावोंकी प्ररूपणा ओघके समान है ॥ ५३ ॥
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संजदासंजदा ओघं || ५४ ॥
संयतासंयत भावोंकी प्ररूपणा ओघके समान है ॥ ५४ ॥
असंजदेसु मिच्छादिट्टि पहुडि जाव असंजदसम्मादिट्ठि त्ति ओघं ।। ५५ ।। असंयतोंमें मिथ्यादृष्टिसे लेकर असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थान तक इन भावोंकी प्ररूपणा ओके समान है ॥ ५५ ॥
दंसणाणुवादेण चक्खुदंसणि अचक्खुदंसणीसु मिच्छादिट्टि पहुडि जाव खीणकसाय - वीराग-छदुमत्था त्ति ओघं ॥ ५६ ॥
दर्शनमार्गणा के अनुवादसे चक्षुदर्शनी और अचक्षुदर्शनियों में मिथ्यादृष्टिसे लेकर क्षीणकषाय- वीतराग छद्मस्थ तक इन भावोंकी प्ररूपणा ओघके समान है ॥ ५६ ॥
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ओहिदंसणी ओहिणाणिभंगो ॥ ५७ ॥
अवधिदर्शनी जीवोंके भावोंकी प्ररूपणा अवधिज्ञानियोंके समान है ॥ ५७ ॥ केवलसणी केवलणाणिभंगो ।। ५८ ।।
केवलदर्शनी जीवोंके भावोंकी प्ररूपणा केवलज्ञानियोंके भावोंके समान है ॥ ५८ ॥ लेस्सावादेण किहलेस्सिय-णीललेस्सिय काउलेस्सिएसु चदुट्टाणी ओघं ।। ५९ ।।
श्यामार्गणाके अनुवादसे कृष्णलेश्या, नीललेश्या और कापोतलेश्यावालों में मिथ्यादृष्टि आदि चार भावोंकी प्ररूपणा ओघके समान है ॥ ५९ ॥
तेउलेस्सिय-पम्मलेस्सिएसु मिच्छादिडिप्पहु डि जाव अप्पमत्तसंजदा त्ति ओघं ॥ तेजोलेश्या और पद्मलेश्यावालोंमें मिध्यादृष्टिसे लेकर अप्रमत्तसंयत तक इन भावोंकी प्ररूपणा ओघके समान है ॥ ६० ॥
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