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१, ६, २४६ ] अंतराणुगमे णाणमग्गणा
[२०१ उक्कस्सेण छावहिसागरोवमाणि सादिरेयाणि ॥ २३७ ॥
एक जीवकी अपेक्षा उन्हीं तीनों सम्यग्ज्ञानी संयतासंयतोंका उत्कृष्ट अन्तर साधिक छ्यासठ सागरोपम प्रमाण होता है ॥ २३७ ॥
पमत्त-अप्पमत्तसंजदाणमंतरं केवचिरं कालादो होदि ? णाणाजीवं पडुच्च णत्थि अंतरं, णिरंतरं ॥ २३८ ॥
उक्त तीनों सम्यग्ज्ञानी प्रमत्त और अप्रमत्त संयतोंका अन्तर कितने काल होता है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा अन्तर नहीं होता, निरन्तर है ॥ २३८ ॥
एगजीवं पडुच्च जहण्णेण अंतोमुहुत्तं ।। २३९ ॥
एक जीवकी अपेक्षा तीनों सम्यग्ज्ञानी प्रमत्त और अप्रमत्त संयतोंका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त मात्र होता है ।। २३९॥
उक्कस्सेण तेत्तीसं सागरोवमाणि सादिरेयाणि ।। २४० ॥
एक जीवकी अपेक्षा उक्त तीनों सम्यग्ज्ञानी प्रमत्त और अप्रमत्त संयतोंका उत्कृष्ट अन्तर साधिक तेतीस सागरोपम मात्र होता है ॥ २४० ॥
चदुण्हमुवसामगाणमंतरं केवचिरं कालादो होदि ? णाणाजीवं पडुच्च जहण्णेण एगसमयं ॥ २४१॥ उक्कस्सेण वासपुधत्तं ॥ २४२ ॥
उक्त तीनों सम्यग्ज्ञानी चारों उपशामकोंका अन्तर कितने काल होता है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा जघन्यसे एक समय मात्र अन्तर होता है ॥ २४१ ॥ उन्हींका उत्कृष्ट अन्तर वर्षपृथक्त्व मात्र होता है ॥ २४२ ॥
एगजीवं पडुच्च जहण्णेण अंतोमुहुत्तं ।। २४३ ।।
एक जीवकी अपेक्षा तीनों सम्यग्ज्ञानियोंमें चारों उपशामकोंका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त मात्र होता है ॥ २४३ ॥
उक्कस्सेण छावद्विसागरोवमाणि सादिरेयाणि ॥ २४४ ॥ एक जीवकी अपेक्षा उन्हींका उत्कृष्ट अन्तर साधिक छयासठ सागरोपम मात्र होता है । चदुण्हं खवगाणमोघं । णवरि विसेसो ओधिणाणीसु खवाणं वासपुधत्तं ॥२४५॥
उक्त तीनों सम्यग्ज्ञानी चारों क्षपकोंके अन्तरकी प्ररूपणा ओघके समान है। विशेषता यह है कि नाना जीवोंकी अपेक्षा अवधिज्ञानियोंमें उन चारों क्षपकोंका अन्तर वर्षपृथक्त्व मात्र होता है।।
मणवज्जवणाणीसु पमत्त-अप्पमत्तसंजदाणमंतर केवचिरं कालादो होदि ? णाणाजीवं पडुच्च णत्थि अंतरं, णिरंतरं ।। २४६ ॥
मनःपर्ययज्ञानियोंमें प्रमत्त और अप्रमत्त संयतोंका अन्तर कितने काल होता है ? नाना
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