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अंतरागमे संजममग्गणा
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सामाइय-छेदोवड वणसुद्धिसंजदेसु पमत्तापमत्तसंजदाणमंतरं केवचिरं कालादो होदि ? णाणाजीचं पडुच्च णत्थि अंतरं, णिरंतरं ।। २६१ ।।
१, ६, २७३
सामायिक और छेदोपस्थापना शुद्धि-संयतोंमें प्रमत्त व अप्रमत्त संयतोंका अन्तर कितने कल होता है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा उनका अन्तर नहीं होता, निरन्तर है || २६१ ॥
एगजीवं पडुच्च जहण्णेण अंतोमुहुत्तं ।। २६२ ।। उक्कस्सेण अंतोमुहुत्तं || २६३|| एक जीवकी अपेक्षा उन्हींका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त मात्र होता है || २६२ ॥ तथा उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त मात्र होता है || २६३ ॥
दो मुसामाणमंतरं केवचिरं कालादो होदि । णाणाजीवं पडुच्च जहणेण एगसमयं ।। २६४ । उक्कस्सेण वासyधत्तं ॥ २६५ ॥
सामायिक और छेदोपस्थापना शुद्धिसंयतोंमें अपूर्वकरण और अनिवृत्तिकरण इन दो उपशामकोंका अन्तर कितने काल होता है ? नाना जोवोंकी अपेक्षा जघन्यसे एक समय मात्र अन्तर होता है ॥ २६४ ॥ उन्हींका उत्कृष्ट अन्तर वर्षपृथक्त्व मात्र होता है ।। २६५ ॥
एगजीवं पडुच्च जहणेण अंतोमुहुत्तं ।। २६६ ।। उक्कस्सेण पुव्त्रकोडी देणं ॥ एक जी की अपेक्षा सामायिक और छेदोपस्थापना शुद्धिसंयतोंमें दोनों उपशामकों का जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त मात्र होता है ॥ २६६ ॥ उन्हींका उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम पूर्वकोटि प्रमाण होता है || २६७ ॥
दोहं खवाणमोघं ॥ २६८ ॥
सामायिक और छेदोपस्थापना शुद्धिसंयतों में अपूर्वकरण और अनिवृत्तिकरण इन दो क्षपकोंके अन्तरकी प्ररूपणा ओघके समान है ॥ २६८ ॥
परिहारसुद्धिसंजदेसु पमत्तापमत्त संजदाणमंतरं केवचिरं कालादो होदि ? णाणाजीवं पडुच्च णत्थि अंतरं, निरंतरं ।। २६९ ।।
परिहारशुद्धिसंयतों में प्रमत्त और अप्रमत्त संयतोंका अन्तर कितने काल होता है ? नाना जीवों की अपेक्षा अन्तर नहीं होता, निरन्तर है ॥ २६९ ॥
एगजीवं पडुच्च जहणेण अंतोमुहुत्तं ॥ २७० ॥ उक्कस्सेण अंतोमुहुतं ॥ २७१ ॥ एक जीवकी अपेक्षा उनका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त मात्र होता है ॥ २७० ॥ तथा उन्हींका उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त मात्र होता है ॥ २७१ ॥
सुहुमसांपराइयसुद्धिसंजदेसु सुहुमसांपराइय- उबसा मगाणमंतरं केवचिरं कालादो होदि ? णाणाजीवं पडुच्च जहण्णेण एगसमयं || २७२ ॥ उक्कस्सेण वासपुधत्तं ॥ २७३ ॥ सूक्ष्मसाम्पराय-शुद्धिसंयतोंमें सूक्ष्मसाम्परायिक उपशामकोंका अन्तर कितने काल होता है !
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