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२१४ ] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं
[ १, ६, ३८७ एक जीवकी अपेक्षा उनका अन्तर क्रमशः पल्योपमके असंख्यातवें भाग और अन्तर्मुहूर्त मात्र होता है ॥ ३८६ ॥
उक्कस्सेण अंगुलस्स असंखेजदिभागो असंखेजासंखेजाओ ओसप्पिणिउस्सप्पिणीओ ॥ ३८७ ॥
एक जीवकी अपेक्षा उन्हींका उत्कृष्ट अन्तर अंगुलके असंख्यातवें भाग प्रमाण असंख्यातासंख्यात उत्सर्पिणी और अवसर्पिणी मात्र होता है ॥ ३८७ ॥
असंजदसम्मादिटिप्पहुडि जाव अप्पमत्तसंजदाणमंतरं केवचिरं कालादो होदि ? णाणाजीवं पडुच्च णत्थि अंतरं, णिरंतरं ।। ३८८ ॥
___ असंयतसम्यग्दृष्टि से लेकर अप्रमत्तसंयत गुणस्थान तक आहारक जीवोंका अन्तर कितने काल होता है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा उनका अन्तर नहीं होता, निरन्तर है ॥ ३८८ ॥
एगजीवं पडुच्च जहण्णेण अंतोमुहुत्तं ॥ ३८९ ।। एक जीवकी अपेक्षा उनका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त मात्र होता है ॥ ३८९ ॥ उक्कस्सेण अंगुलस्स असंखेजदिभागो असंखेजाओ ओसप्पिणि-उस्सप्पिणीओ॥
एक जीवकी अपेक्षा उक्त असंयतादि चार गुणस्थानवी आहारक जीवोंका उत्कृष्ट अन्तर अंगुलके असंख्यात भाग प्रमाण असंख्यात अवसर्पिणी और उत्सर्पिणी मात्र होता है ॥ ३९० ॥
चदुण्हमुवसामगामंतरं केवचिरं कालादो होदि ? णाणाजीवं पडुच्च ओघभंगो।।
आहारकोंमें चारों उपशामकोंका अन्तर कितने काल होता है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा उनके अन्तरकी प्ररूपणा ओघके समान है ॥ ३९१ ॥
एगजीवं पडुच्च जहण्णेण अंतोमुहुत्तं ॥ ३९२ ॥ एक जीवकी अपेक्षा उन्हींका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त मात्र होता है ॥ ३९२ ॥
उक्कस्सेण अंगुलस्स असंखेज्जदिभागो असंखेज्जासंखेज्जाओ ओसप्पिणिउस्सप्पिणीओ ॥ ३९३ ॥
एक जीवकी अपेक्षा उन्हींका उत्कृष्ट अन्तर अंगुलके असंख्यातवें भाग प्रमाण असंख्यातासंख्यात अवसर्पिणी और उत्सर्पिणी मात्र होता है ॥ ३९३ ॥
चदुण्हं खवाणमोघं ॥ ३९४ ॥ सजोगिकेवली ओघं ।। ३९५ ॥ __ आहारक चारों क्षपकोंके अन्तरकी प्ररूपणा ओघके समान है ।। ३९४ ॥ आहारक सयोगिकेवलियोंके अन्तरकी प्ररूपणा ओघके समान है ॥ ३९५ ।।
अणाहारा कम्मइयकायजोगिभंगो ॥ ३९६ ॥
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