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अंतराणुगमे आहारमग्गणा
एगजीवं पडुच्च णत्थि अंतरं, णिरंतरं ॥ ३७७ ॥
एक जीवकी अपेक्षा उनका अन्तर नहीं होता, निरन्तर है ॥ ३७७ ॥ मिच्छादिट्ठीणमंतरं केवचिरं कालादो होदि ? णाणेगजीवं पडुच्च णत्थि अंतरं, निरंतरं ।। ३७८ ।।
मिथ्यादृष्टि जीवोंका अन्तर कितने काल होता है ? नाना और एक जीवकी अपेक्षा उनका अन्तर नहीं होता, निरन्तर है ॥ ३७८ ॥
१, ६, ३८६ ]
सणियाणुवादेण सणीसु मिच्छादिट्ठीणमोघं ॥ ३७९ ॥
संज्ञीमार्गणाके अनुवाद से संज्ञी जीवोंमें मिथ्यादृष्टियोंके अन्तरकी प्ररूपणा ओघके समान है ॥ ३७९ ॥
सासणसम्मादिट्टि पहुडि जाव उवसंतकसाय -वीदराग - छदुमत्था त्ति पुरिसवेदभंगो || ३८० ॥
संज्ञियों में सासादनसम्यग्दृष्टिसे लेकर उपशान्तकषाय- वीतराग छद्मस्थ तक प्रत्येक गुणस्थानवर्ती जीवोंके अन्तरकी प्ररूपणा पुरुषवेदियोंके समान है ॥ ३८० ॥
चदुहं खवाणमोघं || ३८१ ॥
संज्ञी जीवों में चारों क्षपकोंके अन्तरकी प्ररूपणा ओघके समान है ॥ ३८१ ॥
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अण्णी मंतरं केवचिरं कालादो होदि ? णाणाजीवं पडुच्च णत्थि अंतरं, णिरंतरं ॥ असंज्ञी मिथ्यादृष्टि जीवोंका अन्तर कितने काल होता ? नाना जीवोंकी अपेक्षा उनका अन्तर नहीं होता, निरन्तर है ॥ ३८२ ॥
एगजीवं पडुच्च णत्थि अंतरं, णिरंतरं ।। ३८३ ॥
एक जीवकी अपेक्षा असंज्ञी जीवोंका अन्तर नहीं होता, निरन्तर है ॥ ३८३ ॥
आहारावादेण आहारसु मिच्छादिट्ठीणमोघं ॥ ३८४॥
आहारमार्गणाके अनुवाद से आहारक जीवोंमें मिथ्यादृष्टियोंके अन्तरकी प्ररूपणा ओघके समान है ॥ ३८४ ॥
सास सम्मादिट्ठि सम्मामिच्छादिट्ठीणमंतरं केवचिरं कालादो होदि ? णाणाजीवं पडुच्च ओघं ।। ३८५ ॥
आहारक सासादनसम्यग्दृष्टि और सम्यग्मिथ्यादृष्टियोंका अन्तर कितने काल होता है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा उनके अन्तरकी प्ररूपणा ओघके समान है ॥ ३८५ ॥
एगजीवं पडुच्च जहण्णेण पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो, अंतोमुहुत्तं ||३८६ ॥
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