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१,७,१] भावाणुगमे ओघणिदेसो
[ २१५ अनाहारक जीवोंके अन्तरकी प्ररूपणा कार्मणकाययोगियोंके समान है ॥ ३९६ ॥ णवरि विसेसा अजोगिकेवली ओघं ।। ३९७ ।।
विशेषता केवल यह है कि अनाहारक अयोगिकेवलियोंके अन्तरकी प्ररूपणा ओघके समान है ॥ ३९७ ॥
॥ अन्तरानुगम अनुयोगद्वार समाप्त हुआ ॥ ६ ॥
७. भावाणुगमो
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भावाणुगमेण दुविहो णिदेसो ओघेण आदेसेण य ॥१॥ भावानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है- ओघनिर्देश और आदेशनिर्देश ॥ १॥
नाम, स्थापना, द्रव्य और भावकी अपेक्षा भाव चार प्रकारका है। उनमें बाह्य अर्थकी अपेक्षा न करके अपने आपमें प्रवृत्त · भाव' यह शब्द नामभाव है। स्थापनाभाव सद्भाव और असद्भावके भेदसे दो प्रकारका है। उनमेंसे वीतराग और सराग भावोंका अनुकरण करनेवाली जो स्थापना की जाती है उसको सद्भावस्थापनाभाव कहते हैं । उसके विपरीत असद्भावस्थापनाभाव है ।
द्रव्यभाव आगम और नोआगमके भेदसे दो प्रकारका है। इनमें भावप्राभृतका ज्ञायक, किन्तु वर्तमानमें तद्विषयक उपयोगसे रहित जीव आगमद्रव्यभाव कहलाता है। नोआगमद्रव्यभाव ज्ञायकशरीर, भावी और तद्व्यतिरिक्तके भेदसे तीन प्रकारका है। उनमें ज्ञायकशरीर नोआगमद्रव्यभाव भावी, वर्तमान और समुज्झितके भेदसे तीन प्रकारका है। जो शरीर भविष्यमें भावप्राभूत पर्यायसे परिणत होनेवाले जीवका आधार होगा वह भावी नोआगमज्ञायकशरीर द्रव्यभाव है। भावप्रामृत पर्यायसे परिणत हुए जीवके साथ जो शरीर एकीभूत हो रहा है वह वर्तमान नोआगमज्ञायकशरीर द्रव्यभाव है। भावप्राभृत पर्यायसे परिणत जीवके साथ एकत्वको प्राप्त होकर जो पृथग्भूत हुआ शरीर है वह समुज्झित नोआगमज्ञायकशरीर द्रव्यभाव है । जो जीव भविष्यमें भावप्राभृत पर्यायस्वरूपसे परिणत होगा उसका नाम भावी नोआगमद्रव्यभाव है। तद्व्यतिरिक्त नोआगमद्रव्यभाव सचित्त, अचित्त और मिश्रके भेदसे तीन प्रकारका है। उनमें जीव द्रव्य सचित्त तद्व्यतिरिक्त नोआगमद्रव्यभाव है। पुद्गल, धर्म, अधर्म, काल और आकाश ये पांच द्रव्य अचित्त तद्व्यतिरिक्त नोआगमभाव है। कथंचित् जात्यन्तर अवस्थाको प्राप्त हुआ जो पुद्गल और जीव द्रव्यका संयोग है उसका नाम मिश्र तद्व्यतिरिक्त नोआगमद्रव्यभाव है।
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