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२१६] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं
[१, ७, ५ आगम और नोआगमके भेदसे भावभाव दो प्रकारका है। उनमें भावप्राभृतका ज्ञायक होकर वर्तमानमें तद्विषयक उपयोगसे सहित जीव आगमभावभाव है। नोआगमभावभाव औदयिक,
औपशमिक, क्षायिक, क्षायोपशमिक और पारिणामिकके भेदसे पांच प्रकारका है। उनमें कर्मोदयजनित भावका नाम औदयिक नोआगमभावभाव है। कर्मोके उपशमसे उत्पन्न हुए भावका नाम औपशामिक नोआगमभावभाव है। कर्मोंके क्षयसे प्रकट होनेवाला जीवका भाव क्षायिक नोआगमभावभाव है। कर्मोंके उदयके होते हुए भी जो जीवगुणका अंश उपलब्ध रहता है वह क्षायोपशमिक नोआगमभावभाव है। पूर्वोक्त चारों भावोंसे भिन्न जो जीव और अजीवगत भाव है उसका नाम पारिणामिक नोआगमभावभाव है। इन सब भावभेदोमेंसे यहां नोआगमभावभावसे प्रयोजन है। इस भावके अनुगमका नाम भावानुगम है और वह ओघ और आदेशके भेदसे दो प्रकारका है।
आगे ओघनिर्देशकी अपेक्षा मिथ्यादृष्टि भावकी प्ररूपणा करनेके लिये सूत्र कहा जाता हैओषेण मिच्छादिदि त्ति को भावो ? ओदइओ भावो ॥ २ ॥
ओघनिर्देशकी अपेक्षा मिथ्यादृष्टि यह भाव उक्त पांच भावोंमेंसे कौन-सा भाव है ? औदयिक भाव है ॥२॥
अतत्त्वश्रद्धानरूप भाव चूंकि मिथ्यात्व दर्शनमोहनीयके उदयसे होता है, अतएव वह औदयिक भाव है।
सासणसम्मादिहि त्ति को भावो ? पारिणामिओ भावो ॥३॥ सासादनसम्यग्दृष्टि यह कौन-सा भाव है ? पारिणामिक भाव है ॥ ३ ॥
सासादनसम्यग्दृष्टि भाव चूंकि दर्शनमोहनीय कर्मके उदय, उपशम, क्षय और क्षयोपशममेंसे किसीकी भी अपेक्षा नहीं करके उत्पन्न होता है, अत एव वह पारिणामिक भाव कहा जाता है ।
सम्मामिच्छादिहि त्ति को भावो ? खओवसमिओ भावो ॥४॥ सम्यग्मिथ्यादृष्टि यह कौन-सा भाव है ? क्षायोपशामिक भाव है ॥ ४ ॥
तत्त्वके श्रद्धान और अश्रद्धानरूप जो जीवका मिश्र परिणाम होता है उसका नाम सम्थग्मिथ्यादृष्टि भाव है । यह भाव दर्शनमोहनीयके क्षयोपशमसे उत्पन्न होनेके कारण क्षायोपशमिक भाव कहा जाता है।
असंजदसम्मादिहि त्ति को भावो ? उवसमिओ वा खइओ वा खओवसमिओ वा भावो ॥५॥
असंयतसम्यग्दृष्टि यह कौन-सा भाव है ? औपशामिक भाव भी है, क्षायिक भाव भी है, और क्षायोपशमिक भाव भी है ॥ ५ ॥
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