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२२०] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं
[१, ७, २८ अणुदिसादि जाव सम्वट्ठसिद्धि-विमाणवासियदेवेसु असंजदसम्मादिहि त्ति को भावो ? ओवसमिओ वा खइओ वा खवोवसमिओ वा भावो ॥ २८ ॥
अनुदिशोंसे लेकर सर्वार्थसिद्धि तक विमानवासी देवोंमें असंयतसम्यग्दृष्टि यह कौन-सा भाव है ? औपशमिक भी है, क्षायिक भी है, और क्षायोपशमिक भी है ॥ २८ ॥
ओदइएण भावेण पुणो असंजदो ॥२९॥ उक्त देवोंका असंयतत्व औदयिक भावसे है ॥ २९॥
इंदियाणुवादेण पंचिंदियपजत्तएसु मिच्छादिटिप्पहुडि जाव अजोगिकेवलि त्ति ओघं ॥३०॥
___ इन्द्रियमार्गणाके अनुवादसे पंचेन्द्रिय पर्याप्तकोंमें मिथ्यादृष्टिसे लेकर अयोगिकेवली तक इन भावोंकी प्ररूपणा ओघके समान है ॥ ३० ॥
कायाणुवादेण तसकाइय-तसकाइयपञ्जत्तएसु मिच्छादिटिप्पहुडि जाव अजोगिकेवलि त्ति ओघं ॥ ३१ ॥
कायमार्गणाके अनुवादसे त्रसकायिक और त्रसकायिक पर्याप्तकोंमें मिथ्यादृष्टिसे लेकर अयोगिकेवली तक इन भावोंकी प्ररूपणा ओघके समान है ॥ ३१ ॥
__जोगाणुवादेण पंचमणजोगि-पंचवचिजोगि-कायजोगि-ओरालियकायजोगीसु मिच्छादिहिप्पहुडि जाव सजोगिकेवलि त्ति ओघं ॥३२॥
योगमार्गणाके अनुवादसे पांचों मनोयोगी, पांचों वचनयोगी, काययोगी और औदारिककाययोगियोंमें मिथ्यादृष्टिसे लेकर सयोगिकेवली तक इन भावोंकी प्ररूपणा ओघके समान है ॥३२॥ . ओरालियमिस्सकायजोगीसु मिच्छादिद्वि-सासणसम्मादिट्ठीणं ओघं ॥ ३३ ॥
औदारिकमिश्रकाययोगियोंमें मिथ्यादृष्टि और सासादनसम्यग्दृष्टि भावोंकी प्ररूपणा ओघके समान है ।। ३३ ॥
असंजदसम्मादिहि त्ति को भावो ? खइओ वा खओवसमिओ वा भावो ॥
औदारिकमिश्रकाययोगियोंमें असंयतसम्यग्दृष्टि यह कौन-सा भाव है ? क्षायिक भाव भी है और क्षायोपशमिक भाव भी है ॥ ३४ ॥
___ कारण यह है कि क्षायिकसम्यग्दृष्टि तथा वेदकसम्यग्दृष्टि देव, नारकी व मनुष्य ये तिर्यंच और मनुष्योंमें उत्पन्न होते हुए पाये जाते हैं। चारों गतियोंके उपशमसम्यग्दृष्टि जीवोंका मरण सम्भव नहीं होनेसे औदारिकमिश्रकाययोगमें उपशम सम्यक्त्वका सद्भाव नहीं पाया जाता है । यद्यपि उपशमश्रेणीपर चढनेवाले और उससे उतरनेवाले संयत जीवोंका मरण सम्भव है, परन्तु उनके
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