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भावागमे गदिमग्गणा
१, ७, २७ ]
ओवसमिओ वा खओवसमिओ वा भावो ॥ २० ॥
विशेष बात यह है कि पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिमतियोंमें असंयतसम्यग्दृष्टि यह कौन-सा भाव है ? औपशमिक भाव भी है और क्षायोपशमिक भाव भी है ॥ २० ॥
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ओदइएण भावेण पुणो असंजदो ॥ २१ ॥
किन्तु पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिमती असंयतसम्यग्दृष्टियोंका असंयतत्व औदयिक भावसे है | मणुस दीए मणुस - मणुसपजत - मणुसिणीसु मिच्छादिट्टि पहुडि जाव अजोगिकेवल तिघं ॥ २२ ॥
मनुष्यगतिमें मनुष्य सामान्य, मनुष्य पर्याप्त और मनुष्यनियों में मिथ्यादृष्टि से लेकर अयोगिकेवली तक इन भावोंकी प्ररूपणा ओधके समान है ॥ २२ ॥
देवदीए देवेसु मिच्छादिट्ठिप्प हुडि जाव असंजदसम्मादिट्टि त्ति ओघं ||२३|| देवगतिमें देवोंमें मिथ्यादृष्टि से लेकर असंयतसम्यग्दृष्टि तक इन भावोंकी प्ररूपणा ओघके समान है || २३ ॥
भवणवासिय वाणवेंतर- जोदिसियदेवा देवीओ सोधम्मीसाणकप्पवासियदेवीओ चमिच्छादिट्ठी सासणसम्मादिट्ठी सम्मामिच्छादिट्ठी ओघं ॥ २४ ॥
भवनवासी, वानव्यन्तर और ज्योतिष्क देव एवं इनकी देवियां तथा सौधर्म और ईशान कल्पवासिनी देत्रियां; इनके मिथ्यादृष्टि, सासादनसम्यग्दृष्टि और सम्यग्मिथ्यादृष्टि भावोंकी प्ररूपणा ओके समान है ॥ २४॥
असजद सम्मादिट्टि त्ति को भावो ! उवसमिओ वा खओवसमिओ वा भावो ॥ २५ ॥ उक्त देव और देवियोंका असंयतसम्यग्दृष्टि यह कौन-सा भाव है ? औपशमिक भाव भी है और क्षायोपशमिक भाव भी है ।। २५ ।।
कारण यह है कि उपर्युक्त देवों और देवियोंमें औपशमिक और क्षायोपशमिक इन दो सम्यक्त्वोंकी ही सम्भावना है, उनके क्षायिक सम्यग्दर्शन सम्भव नहीं है ।
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ओदइएण भावेण पुणो असंजदो || २६ ||
उक्त असंयतसम्यग्दृष्टि देव और देवियोंका असंयतत्व औदयिक भावसे है ॥ २६ ॥ सोधम्मसाणप्पड जाव णवगेवज्जविमाणवासियदेवेसु मिच्छादिट्टि पहुडि जाव असंजदसम्मादिट्टि त्ति ओघं ॥ २७ ॥
सौधर्म - ईशान कल्पसे लेकर नव ग्रैवेयक पर्यन्त विमानवासी देवों में मिथ्यादृष्टि से लेकर असंयतसम्यग्दृष्टि तक उक्त भावोंकी प्ररूपणा ओघके समान हैं ॥ २७ ॥
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