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१, ६, ३६३ ] अंतराणुगमे सम्मत्तमग्गणा
[२११ वेदकसम्यग्दृष्टि संयतासंयत जीवोंका अन्तर कितने काल होता है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा उनका अन्तर नहीं होता, निरन्तर है ॥ ३५० ॥
एगजीवं पडुच्च जहण्णेण अंतोमुहुत्तं ।। ३५१॥ उक्कस्सेण छावढि सागरोवमाणि देसूणाणि ॥ ३५२ ॥
एक जीवकी अपेक्षा उनका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त मात्र होता है ॥ ३५१ ॥ उन्हींका उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम छ्यासठ सागरोपम मात्र होता है ॥ ३५२ ॥
पमत्त-अपमत्तसंजदाणमंतरं केवचिरं कालादो होदि ? णाणाजीवं पडुच्च णत्थि अंतरं, णिरंतरं ॥ ३५३ ।।
वेदकसम्यग्दृष्टि प्रमत्तसंयत और अप्रमत्तसंयतोंका अन्तर कितने काल होता है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा उनका अन्तर नहीं होता, निरन्तर है ॥ ३५३ ॥
___ एगजीवं पडुच्च जहण्णेण अंतोमुहुत्तं ॥३५४॥ उक्कस्सेण तेत्तीसं सागरोवमाणि सादिरेयाणि ।। ३५५ ॥
एक जीवकी अपेक्षा उनका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त मात्र होता है ॥ ३५४ ॥ उन्हींका उत्कृष्ट अन्तर साधिक तेत्तीस सागरोपम मात्र होता है ॥ ३५५ ॥
उवसमसम्मादिट्ठीसु असंजदसम्मादिट्ठीणमंतरं केवचिरं कालादो होदि ? णाणाजीवं पडुच्च जहण्णेण एगसमयं ॥३५६॥ उक्कस्सेण सत्त रादिदियाणि ॥३५७॥
उपशमसम्यग्दृष्टियोंमें असंयतसम्यग्दृष्टि जीवोंका अन्तर कितने काल होता है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा उनका जघन्य अन्तर एक समय मात्र होता है ॥ ३५६ ॥ उनका उत्कृष्ट अन्तर । सात रात-दिन (अहोरात्र ) मात्र होता है ॥ ३५७ ॥
एगजीवं पडुच्च जहण्णेण अंतोमुहुत्तं ॥३५८॥ उक्कस्सेण अंतोमुहुत्तं ॥३५९।।
एक जीवकी अपेक्षा उनका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त मात्र होता है ॥ ३५८ ॥ उन्हींका उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त मात्र होता है ॥ ३५९ ॥
संजदासंजदाणमंतरं केवचिरं कालादो होदि ? णाणाजीवं पडुच्च जहण्णेण एगसमयं ॥ ३६० ॥ उक्कस्सेण चोदस रादिदियाणि ॥ ३६१ ॥
___ उपशमसम्यग्दृष्टि संयतासंयतोंका अन्तर कितने काल होता है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा उनका जघन्य अन्तर एक समय मात्र होता है ॥ ३६० ॥ उन्हींका उत्कृष्ट अन्तर चौदह रात-दिन मात्र होता है ॥ ३६१ ॥
एगजीवं पडुच्च जहण्णेण अंतोमुहुत्तं ॥३६२।। उक्कस्सेण अंतोमुहुत्तं ॥३६३ ॥ एक जीवकी अपेक्षा उनका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त मात्र होता है ॥३६२॥ उन्हींका
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