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२१०] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं
[१, ६, ३३८ क्षायिकसम्यग्दृष्टियोंमें असंयतसम्यग्दृष्टियोंका अन्तर कितने काल होता है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा अन्तर नहीं होता, निरन्तर है ॥ ३३७ ॥
एगजीवं पडुच्च जहण्णेण अंतोमुहुत्तं ॥ ३३८ ॥ उक्कस्सेण पुव्बकोडी देसूणं ।।
एक जीवकी अपेक्षा उनका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त मात्र होता है ॥ ३३८ ॥ उन्हींका उत्कृष्ट अन्तर कुछ ( आठ वर्ष और दो अन्तमुहूर्त ) कम पूर्वकोटि मात्र होता है । ३३९॥
संजदासंजद-पमत्त-अपमत्तसंजदाणमंतरं केवचिरं कालादो होदि ? णाणाजीवं पडुच्च णत्थि अंतरं, णिरंतरं ।। ३४० ॥
क्षायिकसम्यग्दृष्टि संयतासंयत, प्रमत्तसंयत और अप्रमत्तसंयत जीवोंका अन्तर कितने काल होता है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा उनका अन्तर नहीं होता, निरन्तर है ॥ ३४० ॥
___एगजीवं पड्डुच्च जहण्णेण अंतोमुहुत्तं ॥ ३४१॥ उक्कस्सेण तेत्तीसं सागरोवमाणि सादिरेयाणि ॥ ३४२ ॥
एक जीवकी अपेक्षा उनका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त मात्र होता है ॥३४१॥ उन्हींका उत्कृष्ट अन्तर साधिक तेत्तीस सागरोपम मात्र होता है ॥ ३४२ ॥
चदुण्हमुवसामगाणमंतरं केवचिरं कालादो होदि ? णाणाजीवं पडुच्च जहण्णेण एगसमयं ॥ ३४३ ॥ उक्कस्सेण वासपुधत्तं ॥ ३४४ ॥
क्षायिकसम्यग्दृष्टि चारों उपशामकोंका अन्तर कितने काल होता है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा उनका अन्तर जघन्यसे एक समय मात्र होता है ॥ ३४३ ॥ उन्हींका उत्कृष्ट अन्तर वर्षपृथक्त्व मात्र होता है ॥ ३४४ ॥
एगजीवं पडुच्च जहण्णेण अंतोमुहुत्तं ॥ ३४५ ॥ उक्कस्सेण तेत्तीसं सागरोवमाणि सादिरेयाणि ।। ३४६ ।।
एक जीवकी अपेक्षा उनका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त मात्र होता है ॥ ३४५ ॥ उन्हींका उत्कृष्ट अन्तर साधिक तेत्तीस सागरोपम मात्र होता है ॥ ३४६ ।।
चदुण्हं खवा अजोगिकेवली ओघं ॥ ३४७॥ सजोगिकेवली ओघं ॥३४८॥
क्षायिकसम्यग्दृष्टि चारों क्षपक और अयोगिकेवलियोंके अन्तरकी प्ररूपणा ओघके समान है ॥ ३४७ ॥ सयोगिकेवलियोंके अन्तरकी प्ररूपणा ओघके समान है ॥ ३४८ ॥
वेदगसम्मादिट्ठीसु असंजदसम्मादिट्ठीणं सम्मादिट्ठिभंगो ॥ ३४९ ॥ वेदगसम्यादृष्टियोंमें असंयतसम्यग्दृष्टियोंके अन्तरकी प्ररूपणा सम्यग्दृष्टियोंके समान है ॥
संजदासंजदाणमंतरं केवचिरं कालादो होदि ? णाणाजीवं पडुच्च णत्थि अंतरं, णिरंतरं ॥ ३५०॥
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