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छक्खंडागमे जीवद्वाणं
[ १, ६, ३१५
एक जीवकी अपेक्षा उन्हींका उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम इकतीस सागरोपम मात्र होता है | संजदासंजद - पमत्त संजदाणमंतरं केवचिरं कालादो होदि ? णाणेगजीवं पडुच्च णत्थि अंतरं, णिरंतरं ।। ३१५ ॥
शुक्लेश्यावाले संयतासंयत और प्रमत्तसंयतोंका अन्तर कितने काल होता है ? नाना और एक जीवकी अपेक्षा उनका अन्तर नहीं होता, निरन्तर है ॥ ३१५ ॥
अपमत्त संजदाणमंतरं केवचिरं कालादो होदि १ णाणाजीवं पडुच्च णत्थि अंतरं, निरंतरं ।। ३१६ ।।
शुक्ललेश्यावाले अप्रमत्तसंयतोंका अन्तर कितने काल होता है : नाना जीवोंकी अपेक्षा उनका अन्तर नहीं होता, निरन्तर है ॥ ३९६ ॥
एगजीवं पडुच्च जहण्णेण अंतोमुहुत्तं ॥ ३१७ ॥ उक्कस्समंतोमुहुत्तं ॥ ३९८ ॥ एक जीवकी अपेक्षा उनका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त मात्र होता है ॥ ३१७ ।। उन्हींका उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त मात्र होता है ॥ ३९८ ॥
तिण्हमुव साम गाणमंतरं केवचिरं कालादो होदि ? णाणाजीवं पडुच्च जहणेण एगसमयं ।। ३१९ ।
शुक्ललेश्यावाले अपूर्वकरण, अनिवृत्तिकरण और सूक्ष्मसाम्पराय गुणस्थानवर्ती तीन उपशामक जीवोंका अन्तर कितने काल होता है : नाना जीवोंकी अपेक्षा जघन्यसे एक समय मात्र अन्तर होता है ॥ ३१९ ॥
उक्कस्सेण वासपुधत्तं ॥ ३२० ॥
नाना जीवों की अपेक्षा शुक्ललेश्यावाले उन तीनों उपशामकोंका उत्कृष्ट अन्तर वर्ष पृथक्त्व मात्र होता है ॥ ३२० ॥
एगजीवं पडुच्च जहणेण अंतोमुहुत्तं || ३२१ ॥ उक्कस्सेण अंतोमुहुत्तं ॥ ३२२ ॥ एक जीवकी अपेक्षा उन्हींका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त मात्र होता है ॥ ३२९ ॥ उन्हींका उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त मात्र होता है ॥ ३२२ ॥
उवसंतकसाय- वीदराग-छदुमत्थाणमंतरं केवचिरं कालादो होदि ? णाणाजीव पटुच्च जहण्णेण एगसमयं ॥ ३२३ ॥ उक्कस्सेण वासपुधत्तं ॥ ३२४ ॥
शुक्लेश्यावाले उपशान्तकषाय- वीतराग छद्मस्थोंका अन्तर कितने काल होता है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा उनका अन्तर जघन्यसे एक समय मात्र होता है ॥ ३२३ ॥ उन्हींका उत्कृष्ट अन्तर वर्षपृथक्त्व मात्र होता है || ३२४ ॥
एगजीवं पडुच्च णत्थि अंतरं, णिरंतरं ॥ ३२५ ॥
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