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२०६] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं
[१, ६, २९६ दर्शनी जीवोंके अन्तरकी प्ररूपणा केवलज्ञानियोंके समान है ॥ २९५ ॥
लेस्साणुवादेण किण्हलेस्सिय-णीललेस्सिय-काउलेस्सिएसु मिच्छादिट्ठि-असंजद- . सम्मादिट्ठीणमंतरं केवचिरं कालादो होदि ? णाणाजीवं पडुच्च णत्थि अंतरं, णिरंतरं ॥२९६॥
लेश्यामार्गणाके अनुवादसे कृष्ण, नील और कापोत लेश्यावालोंमें मिथ्यादृष्टि और असंयतसम्यग्दृष्टि जीवोंका अन्तर कितने काल होता है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा अन्तर नहीं होता, निरन्तर है॥
एगजीवं पडुच्च जहण्णेण अंतोमुहत्तं ॥ २९७ ॥ एक जीवकी अपेक्षा उनका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त मात्र होता है ॥ २९७ ॥ उक्कस्सेण तेत्तीसं सत्तारस सत्त सागरोवमाणि देसूणाणि ॥ २९८ ।।
एक जीवकी अपेक्षा उन्हींका उत्कृष्ट अन्तर क्रमशः कुछ कम, तेतीस, सत्तरह और सात सागरोपम मात्र होता है ॥२९८ ॥
सासणसम्मादि ट्ठि-सम्मामिच्छादिट्ठीणमंतरं केवचिरं कालादो होदि ? णाणाजीवं पडुच्च ओघं ।। २९९ ॥
उक्त तीनों अशुभ लेश्यावाले सासादनसम्यग्दृष्टि और सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीवोंका अन्तर कितने काल होता है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा उनके अन्तरकी प्ररूपणा ओघके समान है ॥२९९॥
एगजीवं पडुच्च जहण्णण पलिदोवमस्स असंखेजदिभागो, अंतोमुहत्तं ॥३०॥
एक जीवकी अपेक्षा उनका जघन्य अन्तर क्रमशः पत्योपमके असंख्यातवें भाग और अन्तर्मुहूर्त मात्र होता है ॥ ३०० ॥
उक्कस्सेण तेत्तीसं सत्तारस सत्त सागरोवमाणि देसूणाणि ।। ३०१ ॥
एक जीवकी अपेक्षा उन्हींका उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम तेतीस सागरोपम, सत्तरह सागरोपम और सात सागरोपम मात्र होता है ॥ ३०१ ॥
तेउलेस्सिय-पम्मलेस्सिएसु मिच्छादिहि-असंजदसम्मादिट्ठीणमंतरं केवचिरं कालादो होदि ? णाणाजीवं पडुच्च णत्थि अंतरं, णिरंतरं ।। ३०२ ॥
तेजोलेश्या और पद्मलेश्यावाले जीवोंमें मिथ्यादृष्टि और असंयतसम्यग्दृष्टि जीवोंका अन्तर कितने काल होता है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा उनका अन्तर नहीं होता, निरन्तर है ॥ ३०२ ॥
एगजीवं पडुच्च जहण्णेण अंतोमुहुत्तं ॥ ३०३॥ उक्कस्सेण वे अट्ठारस सागरोवमाणि सादिरेयाणि ॥ ३०४॥
___ एक जीवकी अपेक्षा उनका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त होता है ॥३०३॥ तथा उन्हींका उत्कृष्ट अन्तर साधिक दो सागरोपम और साधिक अठारह सागरोपम मात्र होता है ॥ ३०४ ॥
सासणसम्मादिद्वि-सम्मामिच्छादिट्ठीणमंतरं केवचिरं कालादो होदि ? णाणाजीवं
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