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१,६, २९५ ]
पडुच्च ओघं ॥ २८३ ॥
चक्षुदर्शनी सासादनसम्यग्दृष्टि और सम्यग्मिथ्यादृष्टियोंका अन्तर कितने काल होता है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा उनके अन्तरकी प्ररूपणा ओघके समान है ॥ २८३ ॥
अंतरागमे दंसणमग्गणा
एगजीवं पडुच्च जहणेण पलिदोवमस्स असंखेञ्जदिभागो, अंतोमुहुत्तं ॥ २८४॥ उक्कस्सेण वे सागरोवमसहस्साणि देसूणाणि ॥ २८५ ॥
एक जीवकी अपेक्षा उनका जधन्य अन्तर क्रमशः पल्योपमके असंख्यातवें भाग और अन्तर्मुहूर्त मात्र होता है ॥ २८४ ॥ उन्हींका उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम दो हजार सागरोपम मात्र होता है | असंजद सम्मादिट्टि पहुडि जाव अप्पमत्त संजदाणमंतरं केवचिरं कालादो होदि ९ गाणाजीव पडुच्च णत्थि अंतरं, णिरंतरं ॥ २८६ ॥
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असंयतसम्यग्दृष्टिसे लेकर अप्रमत्तसंयत गुणस्थान तक चक्षुदर्शनियोंका अन्तर कितने का होता है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा अन्तर नहीं होता, निरन्तर है ॥ २८६ ॥
उक्कस्से वे सागरोवम-
एगजीवं पडुच्च जहणेण अंतोमुहुत्तं ॥ २८७ ॥ सहस्साणि देसुणाणि ॥ २८८ ॥
एक जीवकी अपेक्षा उनका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त मात्र होता है ॥२८७॥ उन्हींका उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम दो हजार सागरोपम मात्र होता है ॥ २८८ ॥
दुहमुव साम गाणमंतरं केवचिरं कालादो होदि १ णाणाजीवं पडुच्च ओवं ॥ २८९ चक्षुदर्शनी चारों उपशामकोंका अन्तर कितने काल होता है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा उनके अन्तरकी प्ररूपणा ओघके समान है ॥ २८९ ॥
एगजीवं पच्च जहणेण अंतोमुहुत्तं ॥ २९० ॥ उक्कस्सेण वे सागरोत्रम - सहस्साणि देखणाणि ॥ २९९ ॥
एक जीवकी अपेक्षा उनका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त मात्र होता है ॥ २९० ॥ उन्हींका उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम दो हजार सागरोपम मात्र होता है ।। २९१ ॥
चदुहं खवाणमोघं || २९२ ॥
चक्षुदर्शनी चारों क्षपकोंके अन्तरकी प्ररूपणा ओधके समान है ॥ २९२ ॥
अचक्खुदंसणीसु मिच्छा दिट्ठिप्प हुडि जाव खीणकसाय - वीदराग छदुमत्था ओघं ! अचक्षुदर्शनियों में मिथ्यादृष्टिसे लेकर क्षीणकषाय- वीतराग छद्मस्थ गुणस्थान तक प्रत्येक - गुणस्थानवर्ती जीवोंके अन्तरकी प्ररूपणा ओघके समान है || २९३ ॥
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अधिदंसणी अधिणाणिभंगो || २९४ || केवलदंसणी केवलणाणिभंगो ॥ २९५ ॥ अवधिदर्शनी जीवोंके अन्तरकी प्ररूपणा अवधिज्ञानियोंके समान है ।। २९४ ॥ केवल
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