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२००] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं
[१, ६, २२७ खीणकसाय-चीदराग-छदुमत्था अजोगिकेवली ओघं ॥ २२७ ॥
अकषायी जीवोंमें क्षीणकषाय-वीतराग-छद्मस्थ और अयोगिकेवलियोंके अन्तरकी प्ररूपणा ओघके समान है ॥ २२७॥
सजोगिकेवली ओघं ॥ २२८ ॥ अकषायी जीवोंमें सयोगिकेवली जिनोंके अन्तरकी प्ररूपणा ओघके समान है ॥ २२८ ॥
णाणाणुवादेण मदिअण्णाणि-सुदअण्णाणि-विभंगणाणीसु मिच्छादिट्ठीणमंतरं केवचिरं कालादो होदि ? णाणेगजीवं पडुच्च गत्थि अंतरं, णिरंतरं ॥ २२९ ॥
__ज्ञानमार्गणाके अनुवादसे मति-अज्ञानी, श्रुत-अज्ञानी और विभंगज्ञानी जीवोंमें मिथ्यादृष्टियोंका अन्तर कितने काल होता है ? नाना और एक जीवकी अपेक्षा उनका अन्तर नहीं होता, निरन्तर है ॥ २२९॥
सासणसम्मादिट्ठीणमंतरं केवचिरं कालादो होदि ? णाणाजीवं पडुच्च ओघं ॥२३०
तीनों अज्ञानी सासादनसम्यग्दृष्टियोंका अन्तर कितने काल होता है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा उनके अन्तरकी प्ररूपणा ओघके समान है ॥ २३० ॥
एगजीवं पडुच्च णत्थि अंतरं, णिरंतरं ॥ २३१ ।।
एक जीवकी अपेक्षा उक्त तीनों अज्ञानी सासादनसम्यग्दृष्टियोंका अन्तर नहीं होता, निरन्तर है ।। २३१ ।।
आभिणिवोहिय-सुद-ओहिणाणीसु असंजदसम्मादिट्ठीणमंतरं केवचिरं कालादो होदि ? णाणाजीवं पडुच्च णत्थि अंतरं, निरंतरं ॥ २३२ ॥
___आभिनिबोधिकज्ञानी, श्रुतज्ञानी और अवधिज्ञानी जीवोंमें असंयतसम्यग्दृष्टियोंका अन्तर कितने काल होता है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा उनका अन्तर नहीं होता, निरन्तर है ॥ २३२ ॥
एगजीवं पडुच्च जहण्णेण अंतोमुहुत्तं ॥२३३॥ उक्कस्सेण पुयकोडी देसूणं ॥
एक जीवकी अपेक्षा उक्त तीनों सम्यग्ज्ञानी असंयतसम्यग्दृष्टियोंका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त होता है ॥२३३॥ उन्हींका उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम पूर्वकोटि प्रमाण होता है ॥ २३४ ॥
संजदासंजदाणमंतरं केवचिरं कालादो होदि ? णाणाजीवं पडुच्च णत्थि अंतरं णिरंतरं ।। २३५ ॥
उक्त तीनों सम्यग्ज्ञानी संयतासंयतोंका अन्तर कितने काल होता है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा उनका अन्तर नहीं होता, निरन्तर है ॥ २३५॥
एगजीवं पडुच्च जहण्णेण अंतोमुहुत्तं ॥२३६ ।। ___ एक जीवकी अपेक्षा उक्त तीनों सम्यग्ज्ञानी संयतासंयतोंका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त मात्र होता है ॥ २३६ ॥
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