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१९८] छक्खंडागमे जीवाणं
[१, ६, २०५ एगसमयं ॥ २०४॥ उक्कस्सेण वासं सादिरेयं ॥ २०५ ॥
पुरुषवेदी अपूर्वकरण और अनिवृत्तिकरण इन दो क्षपकोंका अन्तर कितने काल होता है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा जघन्यसे एक समय मात्र अन्तर होता है ।। २०४ ॥ उन्हींका उत्कृष्ट अन्तर साधिक एक वर्ष मात्र होता है ॥ २०५॥
एगजीवं पडुच्च णत्थि अंतरं, णिरंतरं ।। २०६ ॥ एक जीवकी अपेक्षा पुरुषवेदी दोनों क्षपकोंका अन्तर नहीं होता, निरन्तर है ॥ २०६॥
णqसयवेदएसु मिच्छादिट्ठीणमंतरं केवचिरं कालादो होदि ? णाणाजीवं पडुच्च णत्थि अंतरं, णिरंतरं ।। २०७॥
__नपुसंकवेदियोंमें मिथ्यादृष्टि जीवोंका अन्तर कितने काल होता है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा उनका अन्तर नहीं होता, निरन्तर है ॥ २०७ ॥
___ एगजीवं पडुच्च जहण्णेण अंतोमुहुत्तं ॥ २०८॥ उकस्सेण तेत्तीसं सागरोवमाणि देसूणाणि ॥ २०९ ॥
एक जीवकी अपेक्षा नपुंसकवेदी मिथ्यादृष्टियोंका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त मात्र होता है ॥२०८॥ उन्हींका उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम तेतीस सागरोपम मात्र होता है ॥ २०९ ॥
सासणसम्मादिटिप्पहुडि जाव अणियट्टिउवसामिदो ति मूलोघं ॥ २१० ॥
सासादनसम्यग्दृष्टिसे लेकर अनिवृत्तिकरण उपशामक गुणस्थान तक नपुंसकवेदी जीवोंके अन्तरकी प्ररूपणा मूलोधके समान है ॥ २१० ॥
दोण्हं खवाणमंतरं केचिरं कालादो होदि ? णाणाजीवं पडुच्च जहण्णेण एगसमयं ॥ २११ ॥ उक्कस्सेण वासपुधत्तं ।। २१२ ॥
__ नपुंसकवेदी अपूर्वकरण और अनिवृत्तिकरण इन दो क्षपकोंका अन्तर कितने काल होता है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा जघन्यसे एक समय मात्र अन्तर होता है ।। २११ ॥ उक्त दोनों नपुंसकवेदी क्षपकोंका उत्कृष्ट अन्तर वर्षपृथक्त्व मात्र होता है ॥ २१२ ॥
एगजीवं पडुच्च णत्थि अंतरं, णिरंतरं ।। २१३ ॥ एक जीवकी अपेक्षा उक्त दोनों नपुंसकवेदी क्षपकोंका अन्तर नहीं होता, निरन्तर है ।
अबगदवेदएसु अणियट्टिउवसम-सुहमउवसमाणमंतरं केवचिरं कालादो होदि ? णाणाजीवं पडुच्च जहण्णेण एगसमयं ।। २१४ ॥ उक्कस्सेण वासपुधत्तं ।। २१५ ॥
अपगतवेदियोंमें अनिवृत्तिकरण और सूक्ष्मसाम्पराय उपशामकोंका अन्तर कितने काल होता है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा जघन्यसे एक समय मात्र अन्तर होता है ॥ २१४ ॥ उन्हींका उत्कृष्ट अन्तर वर्षपृथक्त्व मात्र होता है ॥ २१५ ॥
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