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१, ६, २०४ ]
अंतरागमे वेदमग्गणा
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सासणसम्मादिट्ठि सम्मामिच्छादिडीणमंतरं केवचिरं कालादो होदि ? णाणाजीव पडुच्च जहण्णेण एगसमयं ॥ १९४ ॥
पुरुषवेदी सासादनसम्यग्दृष्टि और सम्यग्मिथ्यादृष्टियोंका अन्तर कितने काल होता है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा जघन्यसे एक समय मात्र अन्तर होता है ॥ १९४ ॥
उक्कस्सेण पलिदोवमस्स असंखेजदिभागो ॥ १९५ ॥
नाना जीवोंकी अपेक्षा पुरुषवेदी सासादनसम्यग्दृष्टि और सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीवोंका उत्कृष्ट अन्तर पल्योपमके असंख्यातवें भाग मात्र होता है ॥ १९५ ॥
एगजीवं पडुच्च जहणेण पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो, अंतोमुहुत्तं ॥ १९६ ॥ एक जीवकी अपेक्षा पुरुषवेदी सासादनसम्यग्दृष्टियोंका जघन्य अन्तर पल्योपमके असंख्यातवें भाग मात्र तथा सम्यग्मिथ्यादृष्टियोंका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त मात्र होता है ॥ १९६ ॥ उक्कस्सेण सागरोवमसदपुधत्तं ॥ १९७ ॥
एक जीवकी अपेक्षा उन्हींका उत्कृष्ट अन्तर सागरोपमशतपृथक्त्व मात्र होता है ॥१९७॥ असंजद सम्मादिट्टि पहुडि जाव अप्पमत्त संजदाणमंतरं केवचिरं कालादो होदि ? गाणाजीव पडुच्च णत्थि अंतरं, निरंतरं ॥ १९८ ॥
असंयतसम्यग्दृष्टिसे लेकर अप्रमत्तसंयत गुणस्थान तक पुरुषवेदी जीवोंका अन्तर कितने काल होता है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा अन्तर नहीं होता, निरन्तर है ॥ १९८ ॥
एगजीवं पडुच्च जहणेण अंतोमुहुत्तं ॥ १९९ ॥
एक जीवकी अपेक्षा उक्त चार गुणस्थानवर्ती पुरुषवेदी जीवोंका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त मात्र होता है ॥ १९९ ॥
उक्कस्सेण सागरोवमसदपुधत्तं ॥ २०० ॥
एक जीवकी अपेक्षा उक्त असंयतादि चार गुणस्थानवर्ती पुरुषवेदियोंका उत्कृष्ट अन्तर सागरोपमशतपृथक्त्व मात्र होता है ॥ २०० ॥
दो मुसा मगाणमंतरं केवचिरं कालादो होदि ? णाणाजीवं पहुच ओघं ||२०१
पुरुषवेदी अपूर्वकरण और अनिवृत्तिकरण इन दो उपशामकोंका अन्तर कितने काल होता है ! नाना जीवोंकी अपेक्षा इन दोनों उपशामकोंके अन्तरकी प्ररूपणा ओघके समान है | २०१ ॥ उक्कस्सेण सागरोत्रमसदपुधत्तं ॥ एक जीवकी अपेक्षा उनका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त मात्र होता है ॥ २०२ ॥ उन्हींका उत्कृष्ट अन्तर सागरोपमशतपृथक्त्व मात्र होता है ॥ २०३ ॥
एगजीवं पडुच्च जहणेण अंतोमुहुत्तं ॥ २०२ ॥
दोन्हं खवाणमंतरं केवचिरं कालादो होदि ? णाणाजीवं पडुच्च जहण्ण
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