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१, ६, २२६ ]
अंतराणुगमे कसायमग्गणा
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एगजीवं पडुच्च जहणेण अंतोमुहुत्तं ॥ २१६ ॥ उक्कस्सेण अंतोमुहुत्तं ॥ २१७ ॥ एक जीवकी अपेक्षा उक्त दोनों उपशामकोंका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त मात्र होता है उन्हींका उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त मात्र होता है ॥ २१७ ॥
॥ २१६ ॥
उवसंतकसाय - वीदराग-छदुमत्थाणमंतरं केवचिरं कालादो होदि ? णाणाजीवं पडुच्च जहण्णेण एगसमयं । २१८ ।। उक्कस्सेण वासपुधत्तं ॥ २१९ ॥
अपगतवेदी उपशान्तकषाय- वीतराग छद्मस्थोंका अन्तर कितने काल होता है ! नाना जीवोंकी अपेक्षा जघन्यसे एक समय मात्र अन्तर होता है ।। २१८॥ उन्हींका उत्कृष्ट अन्तर
वर्षपृथक्त्व मात्र होता है ॥ २१९ ॥
एगजीवं पडुच्च णत्थि अंतरं, निरंतरं ।। २२० ॥
एक जीवकी अपेक्षा उक्त उपशान्तकषाय वीतराग छद्मस्थोंका अन्तर नहीं होता, निरन्तर है ॥ २२० ॥
अणियखवा सुहुमखवा खीणकसाय -वीदराग छदुमत्था अजोगिकेवली ओघं ॥ अपगतयोगियोंमें अनिवृत्तिकरण क्षपक, सूक्ष्मसाम्पराय क्षपक, क्षीणकषाय- वीतराग-छद्मस्थ और अयोगिकेवली जीवोंके अन्तरकी प्ररूपणा ओघके समान है ॥ २२१॥
सजोगिकेवली ओधं ॥ २२२ ॥
अपगतवेदी सयोगिकेवलियोंके अन्तरकी प्ररूपणा ओघके समान है ॥ २२२ ॥
कसायाणुवादे कोधकसाइ-माणकसाइ-मायकसाइ-लोहकसाई मिच्छादिट्ठपहुड जाव सुहुमसांपराइयउवसमा खवा त्ति मणजोगिभंगो ॥ २२३ ॥
कषायमार्गणा अनुवादसे क्रोधकषायी, मानकपायी, मायाकषायी और लोभकषाइयों में मिथ्यादृष्टि से लेकर सूक्ष्मसाम्पराय - उपशामक और क्षपक तक प्रत्येक गुणस्थानवर्ती जीवोंके अन्तरकी प्ररूपणा मनोयोगियोंके समान है ॥ २२३ ॥
अकसाईसु उवसंतकसाय - वीदराग छदुमत्थाणमंतरं केवचिरं कालादो होदि ? णाणाजीव पडुच्च जहणेण एगसमयं ॥ २२४ ॥ उक्कस्सेण वासपुधत्तं ।। २२५ ।।
अकषायी जीवोंमें उपशान्तकषाय- वीतराग छद्मस्थोंका अन्तर कितने काल होता है ? नाना जीवों की अपेक्षा जघन्यसे एक समय मात्र अन्तर होता है ॥ २२४ ॥ उन्हींका उत्कृष्ट अन्तर पृथक्त्व मात्र होता ॥ २२५ ॥
एगजीवं पडुच्च णत्थि अंतरं, निरंतरं ।। २२६ ॥
. एक जीवकी अपेक्षा अकपायी जीवों में उपशान्तकषाय- वीतराग छद्मस्थ जीवोंका अन्तर नहीं होता, निरन्तर है ॥ २२६ ॥
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