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अंतराणुगमे वेदमग्गणा
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उक्कस्सेण वासपुधत्तं ॥ १७५ ॥ नाना जीवोंकी अपेक्षा उन्हींका उत्कृष्ट अन्तर वर्षपृथक्त्व प्रमाण होता है ॥ १७५ ॥ एगजीवं पडुच्च णत्थि अंतरं, जिरंतरं ॥ १७६ ॥
एक जीवकी अपेक्षा आहारकाययोगी और आहारमिश्रकाययोगियोंमें प्रमत्तसंयतोंका अन्तर नहीं होता, निरन्तर है ॥ १७६ ॥
कम्मइयकायजोगीसु मिच्छादिट्ठि-सासणसम्मादिट्ठि-असंजदसम्मादिट्टि-सजोगिकेवलीणं ओरालियमिस्सभंगो ॥ १७७ ॥
कार्मणकाययोगियोंमें मिथ्यादृष्टि, सासादनसम्यग्दृष्टि, असंयतसम्यग्दृष्टि और सयोगिकेवलियोंके अन्तरकी प्ररूपणा औदारिकमिश्रकाययोगियोंके समान है ॥ १७७ ॥
वेदाणुवादेण इत्थिवेदेसु मिच्छादिट्ठीणमंतरं केवचिरं कालादो होदि ? णाणाजीवं पडुच्च णत्थि अंतरं, णिरंतर ॥ १७८ ।।
वेदमार्गणाके अनुवादसे स्त्रीवेदियोंमें मिथ्यादृष्टि जीवोंका अन्तर कितने काल होता है ! नाना जीवोंकी अपेक्षा उनका अन्तर नहीं होता, निरन्तर है ॥ १७८ ।।
एगजीवं पडुच्च जहण्णेण अंतोमुहुत्तं ।। १७९ ।। एक जीवकी अपेक्षा स्त्रीवेदी मिथ्यादृष्टि जीवोंका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त मात्र होता है । उक्कस्सेण पणवण्ण पलिदोवमाणि देसूणाणि ॥ १८० ॥
एक जीवकी अपेक्षा स्त्रीवेदी मिथ्यादृष्टि जीवोंका उत्कृष्ट अन्तर कुछ ( पांच अन्तर्मुहूर्त ) कम पचवन पल्योपम मात्र होता है ।। १८० ॥
___ सासणसम्मादिहि-सम्मामिच्छादिट्ठीणमंतरं केवचिरं कालादो होदि ? णाणाजीवं पडुच्च ओघं ।। १८१ ॥
स्त्रीवेदी सासादनसम्यग्दृष्टि और सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीवोंका अन्तर कितने काल होता है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा उनके अन्तरकी प्ररूपणा ओघके समान है ॥ १८१ ॥
__ एगजीवं पडुच्च जहण्णेण पलिदोवमस्स असंखेजदिभागो, अंतोमुहुत्तं ॥ १८२ ॥
एक जीवकी अपेक्षा स्त्रीवेदी सासादनसम्यग्दृष्टि जीवोंका जघन्य अन्तर पत्योपमके असंख्यातवें भाग मात्र तथा सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीवोंका वह अन्तर जघन्यसे अन्तर्मुहूर्त मात्र होता है ।
उक्कस्सेण पलिदोवमसदपुधत्तं ।। १८३ ॥
एक जीवकी अपेक्षा स्त्रीवेदी सासादनसम्यग्दृष्टि और सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीवोंका उत्कृष्ट अन्तर पल्योपमशतपृथक्त्व मात्र होता है ॥ १८३ ।।
असंजदसम्मादिटिप्पहुडि जाव अपमत्तसंजदाणमंतरं केवचिरं कालादो होदि ?
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