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छक्खंडागमे जीवद्वाणं
[ १, ६, १६७
कारण यह है कि कपाटसमुद्घातसे रहित केवलियोंका कमसे कम एक समयके लिये अभाव पाया जाता है ।
उक्कस्सेण वासपुधत्तं ॥ १६७ ॥
नाना जीवोंकी अपेक्षा औदारिकमिश्रकाययोगी केवलियोंका उत्कृष्ट अन्तर वर्षपृथक्त्व प्रमाण होता है ॥ १६७ ॥
एगजीवं पडुच्च णत्थि अंतरं, णिरंतरं ।। १६८॥
एक जीवकी अपेक्षा औदारिकमिश्रकाययोगी केवली जिनोंका अन्तर नहीं होता, निरन्तर है ॥ १६८ ॥
वेउब्बियकायजोगीसु चदुट्ठाणीणं मणजोगिभंगो ।। १६९ ॥
वैक्रियिककाययोगियोंमें आदिके चारों गुणस्थानवी जीवोंका अन्तर मनोयोगियोंके समान होता है ॥ १६९॥
__वेउब्बियमिस्सकायजोगीसु मिच्छादिट्ठीणमंतरं केवचिरं कालादो होदि ? णाणाजीवं पडुच्च जहण्णेण एगसमयं ।। १७० ॥
वैक्रियिकमिश्रकाययोगियोंमें मिथ्यादृष्टियोंका अन्तर कितने काल होता है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा जघन्यसे एक समय मात्र अन्तर होता है ॥ १७० ॥
उक्कस्सेण बारस मुहुत्तं ॥ १७१ ॥
नाना जीवोंकी अपेक्षा वैक्रियिकमिश्रकाययोगी मिथ्यादृष्टियोंका उत्कृष्ट अन्तर बारह मुहूर्त मात्र होता है ॥ १७१ ॥
एगजीवं पडुच्च णत्थि अंतरं, णिरंतरं ॥ १७२ ॥
एक जीवकी अपेक्षा वैक्रियिकमिश्रकाययोगी मिथ्यादृष्टियोंका अन्तर नहीं होता, निरन्तर है ॥ १७२ ॥
सासणसम्मादिट्ठि-असंजदसम्मादिट्ठीणं ओरालियमिस्सभंगो ॥ १७३ ।।
वैक्रियिकमिश्रकाययोगी सासादनसम्यग्दृष्टि और असंयतसम्यग्दृष्टि जीवोंके अन्तरकी प्ररूपणा औदारिकमिश्रकाययोगियोंके समान है ॥ १७३ ॥
__ आहारकायजोगि-आहारमिस्सकायजोगीसु पमत्तसंजदाणमंतरं केवचिरं कालादो होदि ? णाणाजीवं पडुच्च जहण्णेण एगसमयं ॥ १७४ ॥
___ आहारकाययोगी और आहारमिश्रकाययोगी जीवोंमें प्रमत्तसंयतोंका अन्तर कितने काल होता है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा जघन्यसे एक समय मात्र अन्तर होता है ॥ १७४ ॥
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