________________
१९२] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं
[ १, ६, १४९ चदुण्हं खवा अजोगिकेवली ओधं ॥ १४९ ॥
त्रसकायिक और त्रसकायिक पर्याप्तोंमें चारों क्षपक और अयोगिकेवली जीवोंका अन्तर ओघके समान है ॥ १४९ ॥
सजोगिकेवली ओघं ॥१५० ॥
त्रसकायिक और त्रसकायिक पर्याप्तोंमें सयोगिकेवलियोंके अन्तरकी प्ररूपणा ओघके समान है ॥ १५०॥
तसकाइय-अपज्जत्ताणं पंचिंदियअपज्जत्तभंगो । १५१॥ त्रसकायिक लब्ध्यपर्याप्तोंका अन्तर पंचेन्द्रिय लब्ध्यपर्याप्तकोंके अन्तरके समान है ॥१५१॥ एवं कायं पडुच्च अंतरं । गुणं पडुच्च उभयदो वि णथि अंतरं, णिरंतरं ।। १५२।।
यह अन्तर कायकी अपेक्षासे कहा गया है । गुणस्थानकी अपेक्षा दोनों ही प्रकारसे उनका अन्तर सम्भव नहीं है, निरन्तर है ॥ १५२॥
जोगाणुवादेण पंचमणजोगि-पंचवचिजोगीसु कायजोगि-ओरालियकायजोगीसु मिच्छादिहि-असंजदसम्मादिहि-संजदासंजद-पमत्त-अपमत्तसंजद-सजोगिकेवलीणमंतरं केवचिरं कालादो होदि ? णाणेगजीवं पडुच्च णत्थि अंतरं, णिरंतरं ॥ १५३॥
योगमार्गणाके अनुवादसे पांचों मनोयोगी, पांचों वचनयोगी, काययोगी और औदारिककाययोगियोंमें मिथ्यादृष्टि, असंयतसम्यग्दृष्टि, संयतासंयत, प्रमत्तसंयत, अप्रत्तमसंयत और अयोगिकेवलियोंका अन्तर कितने काल होता है ? नाना और एक जीवकी अपेक्षा उनका अन्तर नहीं होता, निरन्तर है ॥ १५३ ॥
सासणसम्मादिहि-सम्मामिच्छादिट्ठीणमंतरं केवचिरं कालादो होदि ? णाणाजीवं पडुच्च जहण्णेण एगसमयं ॥१५४ ॥
उक्त योगोंवाले सासादनसम्यग्दृष्टि और सम्यग्मिथ्यादृष्टियोंका अन्तर कितने काल होता है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा जघन्यसे एक समय मात्र अन्तर होता है ॥ १५४ ॥
उक्कस्सेण पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो॥ १५५ ।।
एक जीवकी अपेक्षा उक्त योगोंवाले सासादनसम्यग्दृष्टि और सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीवोंका उत्कृष्ट अन्तर पत्योपमके असंख्यातवें भाग मात्र होता है ॥ १५५ ॥
एगजीवं पडुच्च णत्थि अंतरं णिरंतरं ॥ १५६ ॥ एक जीवकी अपेक्षा उनका अन्तर नहीं होता, निरन्तर है ॥ १५६ ॥ चदुण्हमुवसामगाणमंतरं केवचिरं कालादो होदि ? णाणाजीवं पडुच्च ओघं ॥ उक्त योगोंवाले चारों उपशामकोंका अन्तर कितने काल होता है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org .