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१, ६, १६६ ] अंतराणुगमे जोगमग्गणा
[ १९३ उनके अन्तरकी प्ररूपणा ओघके समान है ॥ १५७ ।।
एगजीवं पडुच्च णत्थि अंतरं, णिरंतरं ।। १५८ ।। एक जीवकी अपेक्षा उनका अन्तर नहीं होता, निरन्तर है ॥ १५८ ।। चदुण्हं खवाणमोघं ॥१५९ ॥ उक्त योगोंवाले चारों क्षपकोंके अन्तरकी प्ररूपणा ओघके समान है ॥ १५९ ॥
ओरालियमिस्सकायजोगीसु मिच्छादिट्ठीमंतरं केवचिरं कालादो होदि ? णाणेगजीवं पडुच्च णत्थि अंतरं, णिरंतरं ॥ १६० ॥
औदारिकमिश्रकाययोगियोंमें मिथ्यादृष्टि जीवोंका अन्तर कितने काल होता है ? नाना और एक जीवकी अपेक्षा उनका अन्तर नहीं होता, निरन्तर है ॥ १६० ॥
सासणसम्मादिट्ठीणमंतरं केवचिरं कालादो होदि ? णाणाजीवं पडुच्च ओघं ।
औदारिकमिश्रकाययोगी सासादनसम्यग्दृष्टियोंका अन्तर कितने काल होता है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा उनके अन्तरकी प्ररूपणा ओघके समान है ॥ १६१ ॥
एगजीवं पडुच्च णत्थि अंतरं, निरंतरं ॥ १६२ ॥ एक जीवकी अपेक्षा उनका अन्तर नहीं होता, निरन्तर है ॥ १६२ ॥
असंजदसम्मादिट्ठीणमंतरं केवचिरं कालादो होदि ? णाणाजीवं पडुच्च जहण्णेण एगसमयं ॥ १६३ ।।
औदारिकमिश्रकाययोगी असंयतसम्यग्दृष्टियोंका अन्तर कितने काल होता है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा उनका अन्तर जघन्यसे एक समय मात्र होता है ॥ १६३ ॥
उक्कस्सेण वासपुधत्तं ॥ १६४ ॥
नाना जीवोंकी अपेक्षा औदारिकमिश्रकाययोगी असंयतसम्यग्दृष्टियोंका उत्कृष्ट अन्तर वर्षपृथक्त्व प्रमाण होता है ॥ १६४ ॥
एगजीवं पडुच्च णत्थि अंतरं, णिरंतरं ।। १६५ ॥
एक जीवकी अपेक्षा औदारिकमिश्रकाययोगी असंयतसम्यग्दृष्टियोंका अन्तर नहीं होता, निरन्तर है ॥ १६५ ॥
सजोगिकेवलीणमंतरं केवचिरं कालादो होदि ? णाणाजीवं पडुच्च जहण्णेण एगसमयं ॥ १६६ ॥
औदारिकमिश्रकाययोगी सयोगिकेवली जिनोंका अन्तर कितने काल होता है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा जघन्यसे एक समय मात्र अन्तर होता है ॥ १६६ ॥ छ. २५
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