________________
१८८] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं
[१, ६, ११३ उक्कस्सेण अणंतकालमसंखेज्जपोग्गलपरियढें ॥ ११३॥
एक जीवकी अपेक्षा उन्हींका उत्कृष्ट अन्तर अनन्त कालात्मक असंख्यात पुद्गलपरिवर्तन मात्र होता है ॥ ११३ ॥
पंचिंदिय-पंचिंदियपज्जत्तएसु मिच्छादिट्ठी ओघ ॥ ११४ ॥ पंचेन्द्रिय और पंचेन्द्रिय पर्याप्तोंमें मिथ्यादृष्टि जीवोंका अन्तर ओघके समान है ॥११४॥
सासणसम्मादिहि-सम्मामिच्छादिट्ठीणमंतरं केवचिरं कालादो होदि ? णाणाजीवं पडुच्च जहण्णेण एगसमयं ॥ ११५ ॥
पंचेन्द्रिय व पंचेन्द्रिय पर्याप्त सासादनसम्यग्दृष्टि और सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीवोंका अन्तर कितने काल होता है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा उनका अन्तर जघन्यसे एक समय मात्र होता है ।
उक्कस्सेण पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो॥ ११६ ॥
नाना जीवोंकी अपेक्षा उक्त दोनों गुणस्थानवर्ती पंचेन्द्रिय और पंचेन्द्रिय पर्याप्त जीवोंका उत्कृष्ट अन्तर पल्योपमके असंख्यातवें भाग मात्र होता है ॥ ११६ ॥
एगजीवं पडुच्च जहण्णेण पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो, अंतोमुहुत्तं ॥११७॥
एक जीवकी अपेक्षा उक्त दोनों गुणस्थानवर्ती पंचेन्द्रिय और पंचेन्द्रिय पर्याप्त जीवोंका जघन्य अन्तर क्रमशः पल्योपमके असंख्यातवें भाग और अन्तर्मुहूर्त मात्र होता है ॥ ११७ ।।
उक्कस्सेण सागरोवमसहस्साणि पुव्वकोडिपुधत्तेणब्भहियाणि, सागरोवमसदपुधत्तं ॥ ११८॥
___ एक जीवकी अपेक्षा उक्त दोनों गुणस्थानवर्ती पंचेन्द्रियोंका उत्कृष्ट अन्तर पूर्वकोटिपृथक्त्वसे अधिक एक हजार सागरोपम तथा पंचेन्द्रिय पर्याप्तोंका वह उत्कृष्ट अन्तर सागरोपमशतपृथक्त्व मात्र होता है ॥ ११८ ॥
____असंजदसम्मादिहिप्पहुडि जाव अप्पमत्तसंजदाणमंतरं केवचिरं कालादो होदि ? णाणाजीव पडुच्च णत्थि अंतरं, णिरंतरं ॥ ११९ ॥
असंयतसम्यग्दृष्टिसे लेकर अप्रमत्तसंयत गुणस्थान तक प्रत्येक गुणस्थानवर्ती पंचेन्द्रिय और पंचेन्द्रिय पर्याप्त जीवोंका अन्तर कितने काल होता है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा अन्तर नहीं होता, निरन्तर है ॥ ११९ ॥
एगजीवं पडुच्च जहण्णेण अंतोमुहुत्तं ॥ १२० ॥ एक जीवकी अपेक्षा उनका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त मात्र होता है ॥ १२० ॥
उक्कस्सेण सागरोवमसहस्साणि पुव्वकोडिपुधत्तेणब्भहियाणि सागरोवमसदपुधत्तं ॥ १२१॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org