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१, ६, ११२ ] अंतराणुगमे इंदियमगणा
[ १८७ सागरोपम मात्र होता है ॥ १०३ ॥
बादरेइंदियाणमंतरं केवचिरं कालादो होदि ? णाणाजीवं पडुच्च गत्थि अंतरं, णिरंतरं ॥ १०४॥
___ बादर एकेन्द्रियोंका अन्तर कितने काल होता है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा अन्तर नहीं होता, निरन्तर है ॥ १०४ ॥
एगजीवं पडुच्च जहण्णेण खुद्दाभवग्गहणं ॥ १०५ ॥ एक जीवकी अपेक्षा बादर एकेन्द्रियोंका जघन्य अन्तर क्षुद्रभवग्रहण प्रमाण होता है । उक्कस्सेण असंखेज्जा लोगा ।। १०६॥ एक जीवकी अपेक्षा उन्हींका उत्कृष्ट अन्तर असंख्यात लोक प्रमाण होता है ॥ १०६॥ एवं बादरेइंदियपज्जत्त-अप्पज्जत्ताणं ॥ १०७ ।।
इसी प्रकारसे बादर एकेन्द्रिय पर्याप्त और बादर एकेन्द्रिय लब्ध्यपर्याप्तोंका भी अन्तर जानना चाहिए ॥ १०७ ॥
सुहुमेइंदिय-सुहुमेइंदियपज्जत्त-अप्पज्जत्ताणमंतरं केवचिरं कालादो होदि ? णाणाजीवं पडुच्च णत्थि अंतरं, णिरंतरं ॥ १०८॥
सूक्ष्म एकेन्द्रिय, सूक्ष्म एकेन्द्रिय पर्याप्त और सूक्ष्म एकेन्द्रिय लब्ध्यपर्याप्त जीवोंका अन्तर कितने काल होता है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा अन्सर नहीं होता, निरन्तर है ॥ १०८ ॥
एगजीवं पडुच्च जहण्णेण खुद्दाभवग्गहणं ।। १०९ ।। एक जीवकी अपेक्षा उनका जघन्य अन्तर क्षुद्रभवग्रहण मात्र होता है ॥ १०९ ॥
उक्कस्सेण अंगुलस्स असंखेज्जदिभागो असंखेज्जासंखेज्जाओ ओसप्पिणिउस्सप्पिणीओ ॥ ११० ॥
एक जीवकी अपेक्षा उक्त तीनों सूक्ष्म एकेन्द्रिय जीवोंका उत्कृष्ट अन्तर अंगुलके असंख्यातवें भाग स्वरूप असंख्यातासंख्यात उत्सर्पिणी और अवसर्पिणी काल प्रमाण होता है ॥ ११० ॥
बीइंदिय-तीइंदिय-चतुरिदिय तस्सेव पज्जत्त-अपज्जत्ताणमंतरं केवचिरं कालादो होदि ? णाणाजीवं पडुच्च णत्थि अंतरं, णिरंतरं ॥ १११॥
द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और उन्हींके पर्याप्त तथा लब्ध्यपर्याप्त जीवोंका अन्तर कितने काल होता है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा अन्तर नहीं होता, निरन्तर है ॥ १११ ॥
एगजीवं पडुच्च जहण्णेण खुद्दाभवग्गहणं ।। ११२ ॥ एक जीवकी अपेक्षा उक्त द्वीन्द्रियादि जीवोंका जघन्य अन्तर क्षुद्रभवग्रहण मात्र होता है ।
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