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१, ६, ४१] अंतराणुगमे गदिमांगणा
[१७९ एक जीवकी अपेक्षा इन पृथिवियोंके नारकियोंमें उक्त दोनों गुणस्थानोंका जघन्य अन्तर क्रमश: पल्योपमके असंख्यातवें भाग और अन्तर्मुहूर्त मात्र होता है ॥ ३३ ॥
उक्कस्सेण सागरोवमं तिणि सत्त दस सत्तारस बावीस तेत्तीसं सागरोवमाणि देसूणाणि ॥ ३४ ॥
एक जीवकी अपेक्षा सातों ही पृथिवियोंमें उक्त दोनों गुणस्थानोंका उत्कृष्ट अन्तर क्रमशः कुछ कम एक, तोन, सात, दस, सत्तरह, बाईस और तेत्तीस सागरोपम मात्र होता है ॥ ३४ ॥
तिरिक्खगदीए तिरिकालेसु मिच्छादिट्ठीणभंतरं केवचिरं झालादो होदि ? णाणाजी पडुच्च णस्थि अंतरं, णिरंतरं ।। ३५॥
तिर्यंचगतिमें तिर्यंचोंमें मिथ्यादृष्टि जीवोंका अन्तर कितने काल होता है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा अन्तर नहीं होता, निरन्तर है ॥ ३५ ॥
एगजीवं पडुच्च जहण्णेष अंतोषुहुत्तं ॥ ३६ ।। एक जीवको अपेक्षा तिर्यंच मिथ्यादृष्टि जीवोंका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त मात्र होता है । उक्कस्लेण तिण्णि पलिदोवमाणि देसूणाणि ।। ३७ ॥
एक जीवकी अपेक्षा तिर्यंच मिथ्यादृष्टि जीवोंका उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम तीन पल्योपम मात्र होता है ॥ ३७॥
सासणसम्मादिट्टिप्पहुडि जाव संजदासंजदा ति ओघ ॥ ३८ ॥
तिथंचोंमें सासादनसम्यग्दृष्टि से लेकर संयतासंयत गुणस्थान तकके अन्तरकी प्ररूपणा ओधके समान है ॥ ३८॥
पंचिंदियतिरिक्ख-पंचिंदियतिरिक्खपजत्त-पंचिंदियतिरिक्खजोणिणीसु मिच्छादिट्ठीणमंतरं केवचिरं कालादो होदि ? णाणाजीवं पडुच्च णत्थि अंतरं, मितरं ।। ३९ ॥
पंचेन्द्रिय तिर्यंच, पंचेन्द्रिय तिर्यंच पर्याप्त और पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिमतियोंमें मिथ्यादृष्टियोंका अन्तर कितने काल होता है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा अन्तर नहीं होता, निरन्तर है ॥ ३९ ॥
एगजीवं पडुच्च जहणेण अंतोमुहुत्तं ॥ ४० ॥
एक जीवकी अपेक्षा उक्त तीन तिर्यंच मिथ्यादृष्टियोंका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त मात्र होता है ॥ ४० ॥
उक्कस्सेण तिण्णि पलिदोवमाणि देसूणाणि ।। ४१ ॥
एक जीवकी अपेक्षा उक्त तीनों ही तिर्यंच मिथ्यादृष्टियोंका उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम (मुहूर्तपृथक्त्वसे अधिक दो मास और दो अन्तर्मुहूर्त ) तीन पल्योपम मात्र होता है ॥ ४१ ॥
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