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१, ६, २४ ]
अंतराणुगमे गदिमग्गणा
अन्तरकाल जानना चाहिये।
एगजीवं पडुच्च णस्थि अंतरं, णिरंतरं ।। १८ ।।
एक जीवकी अपेक्षा चारों क्षपकोंका और अयोगिकेवलियोंका अन्तर नहीं होता है, निरन्तर है ॥ १८ ॥
कारण यह है कि क्षपकश्रेणीवाले जीवोंका पुनः लौटना सम्भव नहीं है। ___ सजोगिकेवलीणमंतरं केवचिरं कालादो होदि ? णाणाजीवं पडुच्च णत्थि अंतरं, णिरंतरं ॥ १९ ॥
सयोगिकेवलियोंका अन्तर कितने काल होता है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा अन्तर नहीं होता है, निरन्तर है ॥ १९॥
तात्पर्य यह है कि सयोगिकेवलियोंका कभी अभाव नहीं होता है । एगजीवं पडुच्च णत्थि अंतरं, णिरंतरं ॥ २० ॥ एक जीवकी अपेक्षा सयोगिकेवलियोंका अन्तर नहीं होता, निरन्तर है ॥ २० ॥
इसका कारण यह है कि सयोगिकेवली भगवान् अयोगिकेवली होकर नियमसे सिद्ध होते हैं, उनका पुनः सयोगिकेवली होना सम्भव नहीं है।
आदेसेण गदियाणुवादेण णिरयगदीए णेरइएसु मिच्छादिट्ठि-असंजदसम्मादिट्ठीणमंतरं केवचिरं कालादो होदि ? णाणाजीवं पडुच्च णत्थि अंतरं, णिरंतरं ।। २१ ॥
___ आदेशकी अपेक्षा गतिमार्गणाके अनुवादसे नरकगतिमें नारकियोंमें मिथ्यादृष्टि और असंयतसम्यग्दृष्टि जीवोंका अन्तर कितने काल होता है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा अन्तर नहीं होता, निरन्तर है ॥ २१ ॥
एगजीवं पडुच्च जहण्णेण अंतोमुहुत्तं ॥ २२ ॥
एक जीवकी अपेक्षा वहां उक्त दोनों गुणस्थानवर्ती नारकियोंका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त मात्र होता है ॥ २२ ॥
उक्कस्सेण तेत्तीसं सागरोवमाणि देसूणाणि ।। २३ ॥
एक जीवकी अपेक्षा मिथ्यादृष्टि और असंयतसम्यग्दृष्टि नारकियोंका उत्कृष्ट अन्तर कुछ (छह अन्तर्मुहूर्त ) कम तेत्तीस सागरोपम मात्र होता है ॥ २३ ॥
सासणसम्मादिद्वि-सम्मामिच्छादिट्ठीणमंतरं केवचिरं कालादो होदि ? णाणाजीवं पडुच्च जहण्णेण एगसमयं ॥ २४ ॥
सासादनसम्यग्दृष्टि और सम्यग्मिथ्यादृष्टि नारकियोंका अन्तर कितने काल होता है ?
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