________________
अंतराणुगमे गदिमग्गणा
एगजीवं पच्च जहणेण अंतोमुहुत्तं ॥ ६८ ॥
एक जीवकी अपेक्षा उक्त मनुष्योंका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त मात्र होता है ॥ ६८ ॥ उक्कण पुव्वको डिपुधत्तं ॥ ६९ ॥
एक जीवकी अपेक्षा उक्त तीनों गुणस्थानवाले तीन प्रकारके मनुष्योंका उत्कृष्ट अन्तर पूर्वकोटिपृथक्त्व मात्र होता है ॥ ६९ ॥
१, ६, ७७ ]
चदुमुत्रसामगान नंतरं केवचिरं कालादो होदि ? णाणाजीवं पडुच्च जहण्णेण एगसमयं ।। ७० ।।
चारों उपशामकोंका अन्तर कितने काल होता है : नाना जीवोंकी अपेक्षा जघन्यसे एक समय मात्र अन्तर होता है ॥ ७० ॥
[ १८३
उक्कस्सेण वासधुधत्तं ॥ ७१ ॥
नाना जीवोंकी अपेक्षा उक्त तीन प्रकारके मनुष्यों में चारों उपशामकोंका अन्तर उत्कर्षसे वर्षपृथक्त्व मात्र होता है ॥ ७१ ॥
एगजीवं पहुच जहणेण अंतोमुहुत्तं ॥ ७२ ॥
एक जीवकी अपेक्षा उनका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त मात्र होता है ॥ ७२ ॥
उक्कस्सेण पुव्वको डिपुधत्तं ॥ ७३ ॥
एक जीवकी अपेक्षा उक्त तीन प्रकारके मनुष्यों में चारों उमशामकोंका उत्कृष्ट अन्तर पूर्वकोटिपृथक्त्व मात्र होता है ॥ ७३ ॥
दुहं तवा अजोगिकेवलीणमंतरं केवचिरं कालादो होदि ? णाणाजीवं पटुच्च जहणेण एमसमयं ॥ ७४ ॥
उक्त तीन प्रकारके मनुष्योंमें चारों क्षपक और अयोगिकेवलियोंका अन्तर कितने काल होता है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा जघन्यसे वह एक समय मात्र होता है ॥ ७४ ॥
उक्कस्सेण छम्मासं, वासपुधत्तं ॥ ७५ ॥
नाना जीवोंकी अपेक्षा मनुष्य और मनुष्य पर्याप्तोंमें चारों क्षपकों व अयोगिकेवलियोंका उत्कृष्ट अन्तर छह मास तथा मनुष्यनियोंमें उनका वह अन्तर वर्षपृथक्त्व मात्र होता है ॥ ७५ ॥
एगजीवं पहुच गत्थि अंतरं, निरंतरं ॥ ७६ ॥
एक जीवकी अपेक्षा उनका अन्तर नहीं होता, निरन्तर है ॥ ७६ ॥
सजोगिकेवली ओधं ॥ ७७ ॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org