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११८] छक्खंडागमे जीवट्टाणं
[१, ४, ११३ असंख्यातवां भाग स्पर्श किया है ॥ ११२ ॥
बारह चोदसभागा वा देसूणा ॥ ११३ ॥
नपुंसकवेदी सासादनसम्यग्दृष्टि जीवोंने अतीत और अनागत कालकी अपेक्षा कुछ कम बारह बटे चौदह भाग स्पर्श किये हैं ॥ ११३ ॥
सम्मामिच्छादिट्ठीहि केवडियं खेत्तं फोसिदं? लोगस्स असंखेजदिभागो॥११४॥
नपुंसकवेदी सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीवोंने कितना क्षेत्र स्पर्श किया है ? लोकका असंख्यातवां भाग स्पर्श किया है ॥ ११४ ॥
असंजदसम्मादिहि-संजदासंजदेहि केवडियं खेत्तं फोसिदं ? लोगस्स असंखेजदिभागो ॥ ११५ ॥
नपुंसकवेदी असंयतसम्यग्दृष्टि और संयतासंयत जीवोंने कितना क्षेत्र स्पर्श किया है ? लोकका असंख्यातवां भाग स्पर्श किया है ॥ ११५ ॥
छ चोदसभागा वा देसूणा ॥ ११६ ।।
उक्त जीवोंने अतीत और अनागत कालकी अपेक्षा कुछ कम छह बटे चौदह भाग स्पर्श किये हैं ॥ ११६ ॥
पमत्तसंजदप्पहुडि जाव अणियट्टि त्ति ओघं ।। ११७ ।।
नपुंसकवेदी जीवोंमें प्रमत्तसंयत गुणस्थानसे लेकर अनिवृत्तिकरण गुणस्थान तक प्रत्येक गुणस्थानवी जीवोंका स्पर्शनक्षेत्र ओघके समान लोकका असंख्यातवां भाग है ॥ ११७ ॥
अपगतवेदएसु अणियट्टिप्पहुडि जाव अजोगिकेवलि त्ति ओघं ॥ ११८ ॥
अपगतवेदी जीवोंमें अनिवृत्तिकरण गुणस्थानसे लेकर अयोगिकेवली गुणस्थान तक प्रत्येक गुणस्थानवी जीवोंका स्पर्शनक्षेत्र ओघके समान है ॥ ११८ ॥
सजोगिकेवली ओघं ।। ११९ ॥ अपगतवेदी सयोगिकेवली जीवोंका स्पर्शनक्षेत्र ओघके समान है ॥ ११९ ॥
यद्यपि यहां सयोगिकेवली जीवोंके भी स्पर्शनकी प्ररूपणा पूर्व सूत्रसे ही ज्ञात की जा सकती थी, फिर भी जो इस पृथक् सूत्रके द्वारा उनके स्पर्शनकी प्ररूपणा की गई है वह पूर्वोक्त जीवोंके स्पर्शनसे सयोगिकेवली जीवोंके स्पर्शनकी विशेषता बतलानेके लिये की गई है।
कसायाणुवादेण: कोधकसाइ-माणकसाइ-मायकसाइ-लोभकसाईसु मिच्छादिहिपहुडि जाव अणियट्टि त्ति ओघं ॥ १२० ॥
कषायमार्गणाके अनुवादसे क्रोधकषायी, मानकषायी, मायाकषायी और लोभकषायी
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