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कालाणुगमे कायमग्गणा
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एक जीवकी अपेक्षा उक्त जीवोंका जघन्य काल क्षुद्रभवग्रहण प्रमाण है ॥ १३२ ॥ उक्कस्सेण अंतोमुहत्तं ॥ १३३ ।। उक्त जीवोंका उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है ॥ १३३ ॥
पंचिंदिय-पंचिंदियपज्जत्तएसु मिच्छादिट्ठी केवचिरं कालादो होंति ? णाणाजीवं पडुच्च सव्वद्धा ॥ १३४ ।।
पंचेन्द्रिय और पंचेन्द्रिय पर्याप्तकोंमें मिथ्यादृष्टि जीव कितने काल होते हैं ! नाना जीवोंकी अपेक्षा सर्व काल होते हैं ॥ १३४ ॥
एगजीवं पडुच्च जहण्णेण अंतोमुहुत्तं ॥ १३५ ।। एक जीवकी अपेक्षा उक्त जीवोंका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त प्रमाण है ॥ १३५॥
उक्कस्सेण सागरोवमसहस्साणि पुव्वकोडि पुधत्तेणब्भहियाणि, सागरोवमसदपुधत्तं ।। १३६ ॥
एक जीवकी अपेक्षा उत्कृष्ट काल क्रमसे पूर्वकोटिपृथक्त्वसे अधिक हजार सागरोपम और सागरोपमशतपृथक्त्व प्रमाण है ॥ १३६ ॥
सासणसम्मादिढिप्पहुडि जाव अजोगिकेवलि त्ति ओघं ।। १३७॥
सासादनसम्यग्दृष्टि से लेकर अयोगिकेवली गुणस्थान तक उपर्युक्त पंचेन्द्रिय और पंचेन्द्रिय पर्याप्त जीवोंका काल ओघके समान है ॥ १३७ ॥
पंचिंदियअपज्जत्ता बीइंदियअपज्जत्तभंगो ॥ १३८ ।। पंचेन्द्रिय लब्ध्यपर्याप्तक जीवोंका काल द्वीन्द्रिय लब्ध्यपर्याप्तक जीवोंके कालके समान है।
कायाणुवादेण पुढविकाइया आउकाइया तेउकाइया वाउकाइया केवचिरं कालादो होंति ? णाणाजीवं पडुच्च सव्वद्धा ॥ १३९ ।।
कायमार्गणाके अनुवादसे पृथिवीकायिक, जलकायिक, तेजकायिक और वायुकायिक जीव कितने काल होते हैं ? नाना जीवोंकी अपेक्षा सर्व काल होते हैं ॥ १३९ ।।
एगजीवं पडुच्च जहण्णेण खुद्दाभवग्गहणं ॥ १४० ॥ एक जीवकी अपेक्षा उक्त जीवोंका जघन्य काल क्षुद्रभवग्रहण प्रमाण है ॥ १४० ॥ . उक्कस्सेण असंखेज्जा लोगा ॥ १४१ ॥ एक जीवकी अपेक्षा उक्त जीवोंका उत्कृष्ट काल असंख्यात लोक प्रमाण है ॥ १४१ ॥
बादरपुढविकाइया बादरआउकाइया बादरतेउकाइया बादरवाउकाइया बादरवणफदिकाइयपत्तेयसरीरा केवचिरं कालादो होंति ? णाणाजीवं पडुच्च सम्बद्धा ॥ १४२ ।।
बादर पृथिवीकायिक, बादर जलकायिक, बादर तेजकायिक, बादर वायुकायिक और
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