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१६० छक्खंडागमे जीवाणं
[ १, ५, २५१ एगसमयं ॥ २५१ ॥
क्रोध, मान और माया इन तीन कषायोंकी अपेक्षा आठवें और नौवें गुणस्थानवर्ती दो उपशामक जीव तथा लोभकषायकी अपेक्षा आठवें, नौवें और दसवें गुणस्थानवर्ती तीन उपशामक जीव कितने काल होते हैं ? नाना जीवोंकी अपेक्षा जघन्यसे एक समय होते हैं ॥ २५१ ॥
उक्कस्सेण अंतोमुहुत्तं ॥ २५२ ॥ नाना जीवोंकी अपेक्षा उक्त जीवोंका उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है ॥ २५२ ॥ एगजीवं पडुच्च जहण्णेण एगसमयं ॥ २५३ ॥
एक जीवकी अपेक्षा उक्त जीवोंका जघन्य काल एक समय है जो मरणकी अपेक्षा उपलब्ध होता है ॥ २५३ ॥
उक्कस्सेण अंतोमुहुत्तं ॥ २५४ ।। एक जीवकी अपेक्षा उक्त जीवोंका उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है ॥ २५४ ॥
इसका कारण यह है कि कषायोंका उदय अधिकसे अधिक अन्तर्मुहूर्त काल तक ही रहता है, इसके पश्चात् नियमसे वह नष्ट हो जाता है । ... दोणि तिण्णि खवा केवचिरं कालादो होति ? णाणाजीचं पडुच्च जहण्णेण अंतोमुहुत्तं ॥ २५५ ॥
क्षपकोंमें क्रोध, मान और माया कषायवाले अपूर्वकरण व अनिवृत्तिकरण इन दो गुणस्थानवर्ती क्षपक तथा लोभकषायसे संयुक्त अपूर्वकरण, अनिवृत्तिकरण और सूक्ष्मसाम्पराय इन तीन गुणस्थानवर्ती क्षपक कितने काल होते हैं ? नाना जीवोंकी अपेक्षा जघन्यसे अन्तर्मुहूर्त तक होते हैं ।
उक्कस्सेण अंतोमुहुत्तं ॥ २५६ ॥ नाना जीवोंकी अपेक्षा उक्त क्षपक जीवोंका उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है ॥ २५६ ॥ एगजीवं पडुच्च जहण्णेण अंतोमुहुत्तं ॥ २५७ ।। एक जीवकी अपेक्षा उक्त जीवोंका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त है ॥ २५७ ॥ उक्कस्सेण अंतोमुहुत्तं ॥ २५८ ॥ एक जीवकी अपेक्षा उक्त जीवोंका उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है ॥ २५८ ॥ अकसाईसु चट्ठाणी ओघं ॥ २५९ ॥ अकषायी जीवोंमें अन्तिम चार गुणस्थानवी जीवोंका काल ओघके समान है ।। २५९ ॥ णाणाणुवादेण मदिअण्णाणि-सुदअण्णाणीसु मिच्छादिट्ठी ओघं ॥ २६० ॥ ज्ञानमार्गणाकी अपेक्षा मत्यज्ञानी और श्रुताज्ञानियोंमें मिथ्यादृष्टि जीवोंका काल ओघके
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