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६. अंतराणुगमो
अंतराणुगमेण दुविहो पिद्देमो ओघेण आदेसेण य ॥ १ ॥ अन्तरानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है- ओघनिर्देश और आदेशनिर्देश ॥ १ ॥
नाम, स्थापना, द्रव्य, क्षेत्र, काल और भावके भेदसे अन्तर छह प्रकारका है। उनमें बाह्य अर्थोको छोड़कर अपने आपमें प्रवृत्त होनेवाला ' अन्तर ' यह शब्द नाम - अन्तर है । स्थापनाअन्तर सद्भाव और असद्भाव के भेदसे दो प्रकारका है । भरत और बाहुबली के बीच उमड़ता हुआ नद सद्भावस्थापना- अन्तर है । ' अन्तर ' इस प्रकारकी बुद्धिसे संकल्पित दण्ड, बाण व धनुष आदिका नाम असद्भाव स्थापना - अन्तर है ।
द्रव्य-अन्तर आगम और नोआगमके भेदसे दो प्रकारका है। इनमें अन्तरविषयक प्राभृतके ज्ञायक तथा वर्तमानमें तद्विषयक उपयोगसे रहित जीवको आगमद्रव्य - अन्तर कहते हैं । नोआगमद्रव्य-अन्तर ज्ञायकशरीर, भावी और तद्व्यतिरिक्तके भेदसे तीन प्रकारका है । इनमें ज्ञायकशरीर भी भात्री, वर्तमान और व्यक्तके भेदसे तीन प्रकारका है । तद्द्व्यतिरिक्त नोआगमद्रव्य - अन्तर सचित्त, अचित्त और मिश्रके भेदसे तीन प्रकारका है। उनमेंसे वृषभ जिन और सम्भव जिनके मध्यमें स्थित अजित जिन सचित्त तद्व्यतिरिक्त द्रव्य-अन्तर है । घनोदधि और तनुवातके मध्य में स्थित घनवात अचित्त तद्व्यतिरिक्त द्रव्य-अन्तर है । ऊर्जयन्त और शत्रुंजयके मध्य में स्थित ग्राम व नगरादिक मिश्र तद्व्यतिरिक्त द्रव्य-अन्तर है ।
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भात्र-अन्तर आगम और नोआगमके भेदसे दो प्रकारका है । अन्तर - प्राभृतके ज्ञायक और वर्तमानमें तद्विषयक उपयोगसे सहित जीवको आगमभाव - अन्तर कहते हैं । औदयिक आदि पांच भावोंमेंसे किन्हीं दो भावोंके मध्य में स्थित विवक्षित भावको नोआगम भाव - अन्तर कहते हैं । यहांपर इसी नोआगम भाव-अन्तरसे प्रयोजन है । उसमें भी अजीवभाव - अन्तरको छोड़कर जीवभाव अन्तर ही प्रकृत है, क्योंकि, यहांपर अजीवभाव - अन्तरसे कोई प्रयोजन नहीं है । अन्तर, उच्छेद, विरह और परिणामान्तरगमन ये सब समानार्थक शब्द हैं । इस प्रकार के अन्तरके अनुगमको अन्तरानुगम कहते हैं ।
ओघेण मिच्छादिडीणमंतरं केवचिरं कालादो होदि ? णाणाजीवं पडुच्च णत्थि अंतरं, निरंतरं ॥ २ ॥
ओघसे मिथ्यादृष्टि जीवोंका अन्तर कितने काल होता है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा उनका अन्तर नहीं है, निरन्तर है ॥ २ ॥
छ. २२
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