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१६४ ] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं
[ १, ५, २९१ तेजोलेश्यावाले और पद्मलेश्यावाले जीवोंमें मिथ्यादृष्टि और असंयतसम्यग्दृष्टि जीव कितने काल होते हैं ? नाना जीवोंकी अपेक्षा सर्व काल होते हैं ॥ २९१ ॥
एगजीवं पडुच्च जहण्णेण अंतोमुहत्तं ॥ २९२ ॥
एक जीवकी अपेक्षा तेजोलेश्यावाले और पद्मलेश्यावाले मिथ्यादृष्टि असंयतसम्यग्दृष्टि जीवोंका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त है ॥ २९२ ॥
उक्कस्सेण वे अट्ठारस सागरोवमाणि सादिरेयाणि ।। २९३ ॥
एक जीवकी अपेक्षा तेजोलेश्यावाले मिथ्यादृष्टि व असंयतसम्यग्दृष्टि जीवोंका उत्कृष्ट काल कुछ अधिक दो सागरोपम और पद्मलेश्यावाले उन्हींका उत्कृष्ट काल कुछ अधिक अठारह सागरोपम है ॥ २९३ ॥
सासणसम्मादिट्ठी ओघं ।। २९४ ॥ तेजोलेश्यावाले और पद्मलेश्यावाले सासादनसम्यग्दृष्टि जीवोंका काल ओघके समान है । सम्मामिच्छादिट्ठी ओघं ॥ २९५ ॥ उक्त दोनों लेश्यावाले सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीवोंका काल ओघके समान है ॥ २९५ ॥
संजदासंजद-पमत्त-अप्पमत्तसंजदा केवचिरं कालादो होंति ? णाणाजीवं पडुच्च सव्वद्धा ॥ २९६ ॥
उक्त दोनों लेश्यावाले संयतासंयत, प्रमत्तसंयत और अप्रमत्तसंयत जीव कितने काल होते हैं ? नाना जीवोंकी अपेक्षा सर्व काल होते हैं ॥ २९६ ॥
एगजीवं पडुच्च जहण्णेण एगसमयं ॥ २९७ ॥ एक जीवकी अपेक्षा दोनों लेश्यावाले उक्त जीवोंका जघन्यं काल एक समय है ॥ २९७ उक्कस्समंतोमुहुत्तं ॥ २९८ ॥
एक जीवकी अपेक्षा तेजोलेश्या और पद्मलेश्यावाले संयतासंयत, प्रमत्तसंयत और अप्रमत्तसंयतोंका उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है ॥ २९८ ॥
सुक्कलेस्सिएसु मिच्छादिट्ठी केवचिरं कालादो होंति ? णाणाजीवं पडुच्च सव्वद्धा ॥ २९९ ॥
__ शुक्ललेश्यावाले जीवोंमें मिथ्यादृष्टि जीव कितने काल होते हैं ? नाना जीवोंकी अपेक्षा सर्व काल होते हैं ॥ २९९ ॥
एगजीवं पडुच्च जहण्णेण अंतोमुहुत्तं ॥ ३०० ॥ एक जीवकी अपेक्षा उक्त जीवोंका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त है ॥ ३०० ॥ उक्कस्सेण एक्कत्तीसं सागरोवमाणि सादिरेयाणि ॥ ३०१ ।।
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