________________
१६२] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं
[१,५, २७० गुणस्थान तकका काल ओघके समान है ॥ २७० ॥
परिहारसुद्धिसंजदेसु पमत्त-अप्पमत्तसंजदा ओघं ॥ २७१ ॥ परिहारविशुद्धिसंयतोंमें प्रमत्तसंयत और अप्रमत्तसंयतोंका काल ओघके समान है ॥२७१ सुहुमसांपराइयसुद्धिसंजदेसु सुहुमसांपराइयसुद्धिसंजदा उवसमा खवा ओघं ॥
सूक्ष्मसाम्परायिक शुद्धिसंयतोंमें सूक्ष्मसाम्परायिक शुद्धिसंयत उपशमक और क्षपक जीवोंका काल ओघके समान है ॥ २७२ ॥
जहाक्खादविहारसुद्धिसंजदेसु चट्ठाणी ओघं ॥ २७३ ॥ यथाख्यातविहारशुद्धिसंयतोंमें अन्तिम चार गुणस्थानवी जीवोंका काल ओघके समान है। संजदासजदा ओघं ॥ २७४॥ संयतासंयतोंका काल ओघके समान है ॥ २७४ ॥ असंजदेसु मिच्छादिटिप्पहुडि जाव असंजदसम्मादिहि ति ओघं ॥ २७५ ॥
असंयत जीवोंमें मिथ्यादृष्टि गुणस्थानसे लेकर असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थान तक असंयतोंका काल ओघके समान है ।। २७५ ॥
दंसणाणुवादेण चक्खुदंसणीसु मिच्छादिट्ठी केवचिरं कालादो होंति ? णाणाजीवं पडुच्च सव्बद्धा ॥ २७६ ॥
दर्शनमार्गणाके अनुवादसे चक्षुदर्शनी जीवोंमें मिथ्यादृष्टि जीव कितने काल होते हैं ? नाना जीवोंकी अपेक्षा सर्व काल होते हैं ॥ २७६ ॥
एगजीवं पडुच्च जहण्णेण अंतोमुहत्तं ॥ २७७ ॥ एक जीवकी अपेक्षा उक्त जीवोंका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त है ॥ २७७ ॥ उक्कस्सेण वे सागरोवमसहस्साणि ॥ २७८ ।। चक्षुदर्शनी मिथ्यादृष्टि जीवोंका उत्कृष्ट काल दो हजार सागरोपम है ॥ २७८ ॥ सासणसम्मादिटिप्पहुडि जाव खीणकसाय-बीदराग-छदुमत्था त्ति ओघं ॥२७९
सासादनसम्यग्दृष्टि गुणस्थानसे लेकर क्षीणकषाय-वीतराग-छद्मस्थ गुणस्थान तक चक्षुदर्शनी जीवोंका काल ओघके समान है ॥ २७९ ॥
__ अचक्खुदंसणीसु मिच्छादिटिप्पहुडि जाव खीणकसाय-वीदराग-छदुमत्था त्ति ओघं ॥ २८० ॥
अचक्षुदर्शनियाम मिथ्यादृष्टि गुणस्थानसे लेकर क्षीणकषाय-वीतराग-छद्मस्थ गुणस्थान तकका काल ओघके समान है ॥ २८० ॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org