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कालाणुगमे संजममग्गणा
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समान है ॥ २६०॥
सासणसम्मादिट्ठी ओघं ॥ २६१ ॥ मत्यज्ञानी और श्रुत-अज्ञानी सासादनसम्यग्दृष्टि जीवोंका काल ओघके समान है ॥२६॥ विभंगणाणीसु मिच्छादिट्ठी केवचिरं कालादो होंति ? णाणाजीवं पडुच्च सव्वद्धा ।।
विभंगज्ञानियोंमें मिथ्यादृष्टि जीव कितने काल होते हैं ? नाना जीवोंकी अपेक्षा सर्व काल होते हैं ॥ २६२॥
एगजीवं पडुच्च जहण्णेण अंतोमुहुत्तं ॥ २६३ ॥ एक जीवकी अपेक्षा उक्त जीवोंका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त है ॥ २६३ ॥ उक्कस्सेण तेत्तीसं सागरोवमाणि देसूणाणि ॥ २६४ ॥ एक जीवकी अपेक्षा उक्त जीवोंका उत्कृष्ट काल कुछ कम तेतीस सागरोपम है ।।२६४ ॥ सासणसम्मादिट्ठी ओघं ।। २६५ ॥ विभंगज्ञानी सासादनसम्यग्दृष्टि जीवोंका काल ओघके समान है ॥ २६५ ॥
आभिणिबोहियणाणि-सुदणाणि-ओधिणाणीसु असंजदसम्मादिट्टिप्पहुडि जाव खीणकसाय-वीदराग-छदुमत्था त्ति ओघं ॥ २६६ ॥
आभिनिबोधिकज्ञानी, श्रुतज्ञानी और अवधिज्ञानी जीवोंमें असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थानसे लेकर क्षीणकषाय-वीतराग-छद्मस्थ गुणस्थान तकके जीवोंका काल ओघके समान है ॥ २६६ ॥
मणपज्जवणाणीसु पमत्तसंजदप्पहुडि जाब खीणकसाय-वीदराग-छदुमत्था त्ति ओघं ॥ २६७ ॥
मनःपर्ययज्ञानियोंमें प्रमत्तसंयतसे लेकर क्षीणकषाय-वीतराग-छद्मस्थ गुणस्थान तकके जीवोंका काल ओघके समान है ॥ २६७ ॥
केवलणाणीसु सजोगिकेवली अजोगिकेवली ओघं ॥ २६८ ॥
केवलज्ञानियोंमें सयोगिकेवली और अयोगिकेवली जीवोंके कालकी प्ररूपणा ओघके समान है ॥ २६८ ॥
संजमाणुवादेण संजदेसु पमत्तसंजदप्पहुडि जाव अजोगिकेवलि ति ओघं ॥२६९
संयममार्गणाके अनुवादसे संयतोंमें प्रमत्तसंयतसे लेकर अयोगिकेवली तक सामान्यसे संयत जीवोंका काल ओघके समान है ॥ २६९ ॥
सामाइयच्छेदोवट्ठावणसुद्धिसंजदेसु पमत्तसंजदप्पहुडि जाव अणियट्टि त्ति ओघं ।। सामायिक और छेदोपस्थापना शुद्धिसंयतोंमें प्रमत्तसंयत गुणस्थानसे लेकर अनिवृत्तिकरण
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