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१६६ ] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं
[ १, ५, ३१२ जहण्णेण अंतोमुहुत्तं ॥ ३१२ ।। उनके उस सादि-सान्त मिथ्यात्वका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त है ॥ ३१२ ॥ उक्कस्सेण अद्धपोग्गलपरियट्टे देसूणं ॥ ३१३ ॥ उन्हींके उस सादि-सान्त मिथ्यात्वका उत्कृष्ट काल कुछ कम अर्धपुद्गलपरिवर्तन है॥३१३ सासणसम्मादि टिप्पहुडि जाव अजोगिकेवलि त्ति ओघं ॥ ३१४ ॥
सासादनसम्यग्दृष्टि गुणस्थानसे लेकर अयोगिकेवली गुणस्थान तक उक्त भव्यसिद्धिक जीवोंका काल ओघके समान है ॥ ३१४ ॥
अभवसिद्धिया केवचिरं कालादो होंति ? णाणाजीवं पडुच्च सम्बद्धा ॥ ३१५ ॥ अभव्यसिद्धिक जीव कितने काल होते हैं ? नाना जीवोंकी अपेक्षा सर्व काल होते हैं । एगजीवं पडच्च अणादिओ अपजवसिदो ॥ ३१६॥ एक जीवकी अपेक्षा अभव्यसिद्धिक जीवोंका काल अनादि-अनन्त है ॥ ३१६ ॥
सम्मत्ताणुवादेण सम्मादि ट्ठि-खइयसम्मादिट्ठीसु असंजदसम्मादिटिप्पहुडि जाव अजोगिकेवलि त्ति ओघं ॥ ३१७ ॥
सम्यक्त्वमार्गणाके अनुवादसे सम्यग्दृष्टि और क्षायिकसम्यग्दृष्टियोंमें असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थानसे लेकर अयोगिकेवली गुणस्थान तकका काल ओघके समान है ॥ ३१७ ॥
वेदगसम्मादिट्ठीसु असंजदसम्मादिट्टिप्पहुडि जाव अप्पमत्तसंजदा ति ओघं ॥
वेदकसम्यग्दृष्टियोंमें असंयतसम्यग्दृष्टिसे लेकर अप्रमत्तसंयत गुणस्थान तकका काल ओघके समान है ॥ ३१८ ॥
उवसमसम्मादिट्ठीसु असंजदसम्मादिट्ठी संजदासजदा केवचिरं कालादो होंति ? जाणाजीवं पडुच्च जहण्णेण अंतोमुहुत्तं ॥३१९ ।।
उपशमसम्यग्दृष्टि जीवोंमें असंयतसम्यग्दृष्टि और संयतासंयत जीव कितने काल होते हैं ? नाना जीवोंकी अपेक्षा जघन्यसे अन्तर्मुहूर्त काल होते हैं ॥ ३१९ ॥
उक्कस्सेण पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो ॥ ३२० ॥
उपशमसम्यग्दृष्टियोंमें असंयतसम्यग्दृष्टि और संयतासंयतोंका उत्कृष्ट काल नाना जीवोंकी अपेक्षा पल्योपमके असंख्यातवें भाग है ॥ ३२० ॥
एगजीवं पडुच्च जहणणेण अंतोमुहत्तं ॥ ३२१ ॥ एक जीवकी अपेक्षा उक्त जीवोंका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त है ॥ ३२१ ॥ उक्कस्सेण अंतोमुहत्तं ।। ३२२ ॥ एक जीवकी अपेक्षा उन्हींका उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है ॥ ३२२ ॥
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