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१, ५, ३११ ]
कालाणुगमे भवियमग्गणा
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एक जीवकी अपेक्षा शुक्ललेश्यावाले मिथ्यादृष्टि जीवोंका उत्कृष्ट काल साधिक ( एक अन्तर्मुहूर्तसे अधिक ) इकतीस सागरोपम है ॥ ३०१ ॥
सासणसम्मादिट्ठी ओघं ।। ३०२॥ शुक्ललेश्यावाले सासादनसम्यग्दृष्टि जीवोंका काल ओघके समान है ॥ ३०२ ॥ सम्मामिच्छादिट्टी ओघं ॥ ३०३ ॥ शुक्ललेश्यावाले सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीवोंका काल ओघके समान है ॥ ३०३ ॥ असंजदसम्मादिट्टी ओघं ॥ ३०४ ॥ शुक्ललेश्यावाले असंयतसम्यग्दृष्टि जीवोंका काल ओघके समान है ॥ ३०४ ॥
संजदासंजदा पमत्त-अप्पमत्तसंजदा केवचिरं कालादों होंति ? णाणाजीवं पहुच सव्वद्धा ॥ ३०५॥
शुक्ललेश्यावाले संयतासंयत, प्रमत्तसंयत और अप्रमत्तसंयत जीव कितने काल होते हैं ? नाना जीवोंकी अपक्षा सर्व काल होते हैं ॥ ३०५॥
एगजीवं पडुच्च जहण्णेण एगसमयं ॥ ३०६॥ एक जीवकी अपेक्षा शुक्ललेश्यावाले उक्त जीवोंका जघन्य काल एक समय है ॥ ३०६ ।। उक्कस्सेण अंतोमुहुत्तं ॥ ३०७ ॥
एक जीवकी अपेक्षा शुक्ललेश्यावाले उक्त तीनों गुणस्थानवी जीवोंका उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है ॥ ३०७ ॥
चदुण्हमुवसमा चदुण्डं खवगा सजोगिकेवली ओघं । ३०८ ॥
शुक्ललेश्यावाले चारों उपशामक, चारों क्षपक और सयोगिकेवलियोंका काल ओघके समान है ॥ ३०८ ॥
___ भवियाणुवादेण भवसिद्धिएसु मिच्छादिट्ठी केवचिरं कालादो होंति ? णाणाजीवं पडुच्च सव्वद्धा ॥ ३०९ ॥
भव्यमार्गणाके अनुवादसे भव्यसिद्धिक जीवोंमें मिथ्यादृष्टि जीव कितने काल होते हैं ? नाना जीवोंकी अपेक्षा सर्व काल होते हैं ॥ ३०९॥
एगजीवं पडुच्च अणादिओ सपज्जवसिदो सादिओ सपज्जवसिदो ॥ ३१० ॥ एक जीवकी अपेक्षा भव्यसिद्धिक मिथ्यादृष्टियोंका काल अनादि-सान्त और सादि-सान्त है।। जो सो सादिओ सपज्जवसिदो तस्स इमो णिदेसो ॥ ३११ ॥ इनमें जो सादि-सान्त काल है उसका निर्देश इस प्रकार है ॥ ३११ ॥
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