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१, ५, १६९ ] कालाणुगमे जोगमग्गणा
[१५१ रहकर द्वितीय समयमें मरणको प्राप्त होता हुआ यदि तिर्यंच या मनुष्योंमें उत्पन्न होता है तो कार्मणकाययोगी अथवा औदारिकमिश्रकाययोगी हो जाता है, और यदि देवों या नारकियोंमें उत्पन्न होता है तो कार्मणकाययोगी या वैक्रियिकमिश्रकाययोगी हो जाता है। इस प्रकार मरणकी अपेक्षा मनोयोगी मिथ्यादृष्टिका सूत्रोक्त जघन्य काल उपलब्ध होता है।
__ कोई एक मिथ्यादृष्टि जीव वचनयोग अथवा काययोगके साथ अवस्थित था। उसके इन योगोंका विनाश हो जानेपर वह मनोयोगी हो गया और एक समय उस मनोयोगके साथ मिथ्यादृष्टि ही रहा। पश्चात् द्वितीय समयमें वह व्याघातको प्राप्त होकर काययोगी हो गया और मिथ्यादृष्टि ही रहा । इस प्रकार व्याघातकी अपेक्षा मनोयोगी मिथ्यादृष्टिका एक समय मात्र जघन्य काल उपलब्ध होता है। इसी प्रकार सूत्रोक्त पांच मनोयोगों और पांच मनोयोगोंमें किसी भी योगकी विवक्षासे मिथ्यादृष्टि, असंयतसम्यग्दृष्टि, संयतासंपत, प्रमत्तसंयत, अप्रमत्तसंयत और सयोगिकेवलोक एक समय मात्र जघन्य कालको भी यथासम्भव समझना चाहिये। इतना विशेष जानना चाहिये कि अप्रमत्तसंयतके व्याघातकी सम्भावना नहीं है ।
उक्कस्सेण अंनोमुहुत्तं ॥१६४॥
एक जीवकी अपेक्षा उक्त पांचों मनोयोगी तथा पांचों वचनयोगी मिथ्यादृष्टि, असंयत सम्यग्दृष्टि, संयतासंपत, प्रमत्तसंयत, अप्रमत्तसंयत और सयोगिकेवलीका उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है।
सासणसम्मादिट्ठी ओघं ॥ १६५ ।।
एक जीवकी अपेक्षा पांचों मनोयोगी और पांचों वचनयोगी सासादनसम्यग्दृष्टियोंका काल ओघके समान है ॥ १६५॥
___ सम्मामिच्छादिट्ठी केवचिरं कालादो होति ? णाणाजीवं पडुच्च जहणेण एगसमयं ॥ १६६ ॥
पांचों मनोयोगी और पांचों वचनयोगी सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीव कितने काल होते हैं ? नाना जीवोंकी अपेक्षा एक समय मात्र होते हैं ॥ १६६ ॥
उक्कस्मेण पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो ॥ १६७ ।।
उक्त पांचों मनोयोगी और पांचों वचनयोगी सम्याम्पत्पादष्टि जीवोंका उत्कृष्ट काल पन्योपमके असंख्यातवें भाग है ।। १६७ ।।
एगजीवं पडुच्च जहण्णेण एगसमयं ॥ १६८ ।। ___ एक जीवकी अपेक्षा उक्त पांचों मनोयोग और पांचों वचन्न योगवाले सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीवोंका जघन्य काल एक समय है ॥ १६८ ॥
उक्कस्सेण अंतोमुहुत्तं ॥ १६९ ॥
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