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१, ५, १८७] कालाणुगमे जोगमगणा
[१५३ एगजीवं पडुच्च जहण्णेण एगसमयं ॥१७९ ॥ एक जीवकी अपेक्षा औदारिककाययोगी मिथ्यादृष्टियोंका जघन्य काल एक समय है ॥ उक्कस्सेण बावीसं वासहस्साणि देसूणाणि ॥ १८० ॥ उक्त जीवोंका एक जीवकी अपेक्षा उत्कृष्ट काल कुछ कम बाईस हजार वर्ष है ॥१८०॥
एक तिर्यंच, मनुष्य अथवा देव बाईस हजार वर्षकी आयुस्थितिवाले एकेन्द्रियोंमें उत्पन्न होकर सर्वजघन्य अन्तर्मुहूर्त कालमें पर्याप्त हुआ । पश्चात् वह औदारिकशरीरके अपर्याप्तकालसे कम बाईस हजार वर्ष तक औदारिककाययोगके साथ रह करके पुनः अन्य योगको प्राप्त हुआ। इस प्रकारसे कुछ कम बाईस हजार वर्ष प्रमाण औदारिककाययोगी मिथ्यादृष्टिका उत्कृष्ट काल उपलब्ध हो जाता है।
सासणसम्मादिटिप्पहुडि जाव सजोगिकेवलि त्ति मणजोगिभंगो ।। १८१ ।।
सासादनसम्यग्दृष्टिसे लेकर सयोगिकेवली गुणस्थान तक औदारिककाययोगियोंका काल मनोयोगियोंके समान है ॥ १८१ ।।
ओरालियमिस्सकायजोगीसु मिच्छादिट्ठी केवचिरं कालादो होंति ? णाणाजीवं पडुच्च सव्वद्धा ।। १८२ ।।
औदारिकमिश्रकाययोगियोंमें मिथ्यादृष्टि जीव कितने काल होते हैं : नाना जीवोंकी अपेक्षा सर्व काल होते हैं ॥ १८२ ॥
एगजीवं पड्डुच्च जहण्णेण खुद्दाभवग्गहणं तिसमऊणं ॥ १८३ ॥
एक जीवकी अपेक्षा औदारिकमिश्रकाययोगी मिथ्यादृष्टि जीवोंका जघन्य काल तीन समय कम क्षुद्रभवग्रहण प्रमाण है ।। १८३ ।।
उक्कस्सेण अंतोमुहुत्तं ॥ १८४ ॥
एक जीवकी अपेक्षा औदारिकमिश्रकाययोगी मिथ्यादृष्टि जीवोंका उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है ॥ १८४ ॥
सासणसम्मादिट्ठी केवचिरं कालादो होति? णाणाजीवं पडुच्च जहण्णेण एगसमयं ।।
औदारिकमिश्रकाययोगी सासादनसम्यग्दृष्टि जीव कितने काल होते हैं ? नाना जीवोंकी अपेक्षा जघन्यसे एक समय होते हैं ॥ १८५ ॥
उक्कस्सेण पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो ॥ १८६ ।। नाना जीवोंकी अपेक्षा उक्त जीवोंका उत्कृष्ट काल पल्योपमके असंख्यातवें भाग प्रमाण है ॥ एगजीवं पडुच्च जहण्णेण एगसमओ ॥ १८७ ।।
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